Titanic:- कभी ऐसा भी होता है कि हम किसी नई जगह होते हैं या कुछ नया कर रहे होते हैं, तो लगता है कि हम वहां पहले भी आ चुके हैं या वह काम पहले भी कर चुके हैं। यह शायद भ्रम की स्थिति होती है। हिंदी में इसके लिए कोई शब्द नहीं बना पर फ़्रेंच में इसे ‘देजा वू’ कहते हैं। कभी कभी यूं भी होता है न, कि हम कोई ख़्वाब देखते हैं और अगले दिन या कुछ दिनों बाद वह हक़ीक़त बन जाता है। ऐसा क्यों होता है? मशहूर लेखक टॉम रॉबिन्स ने कभी कहा था, ‘ख्व़ाब हक़ीक़त नहीं बनते, वे होते हैं’।
आज एक ऐसे शख़्स का बयान है जिसने दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी की बात एक कहानी में 14 साल पहले लिख दी थी। टाइटैनिक के डूबने की घटना को दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी कहा जाता है। यह घटना 14 अप्रैल, 1912 को घटी थी. लेकिन एक ऐसा शख्स था जिसने इस त्रासदी की बात 14 साल पहले ही अपनी कहानी में लिख दी थी। वो सच साबित हुई। न्यूयॉर्क में रहने वाले मॉर्गन रॉबर्टसन ही वो लेखक थे, जिनकी कहानी एक त्रासदी के रूप में सच साबित हुई। 1861 में जन्मे मॉर्गन का कनेक्शन भी पानी के जहाज से रहा है।
मॉर्गन के पिता जहाज के कप्तान रहे और इन्होंने भी 16 साल की उम्र से यही काम करना शुरू किया था। कुछ साल यहां काम करने के बाद मार्गन न्यूयॉर्क आ गए और ज्वैलरी के व्यापार से जुड़े। पर बिजनेस में कुछ खास फायदा नहीं हुआ। आंखों की गिरती रोशनी ने हालात और बिगाड़ दिए। इसी दौर में मॉर्गन को रुडयार्ड किपलिंग की वो किताब मिली जो समुद्री यात्रा के अनुभवों पर लिखी गई थी। इसे पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी अनुभवों और इससे जुड़ी काल्पनिक कहानियों को लिखने का निश्चय किया।
मॉर्गन ने पहली रात ही एक कहानी लिखी और 25 डॉलर में एक मैगजीन को बेच दी थी। वह ऐसे लेखकों में शामिल थे जिसे कभी उनके काम के कारण नहीं पहचाना गया। कई कहानियां लिखने के बाद भी उनकी कोई पहचान नहीं बन पाई। नतीजा, वह लम्बे समय तक आर्थिक तंगी से जूझते रहे।
1897 की एक शाम मॉर्गन ने तय किया कि वो समुद्री यात्रा पर एक कहानी लिखेंगे। उनकी कहानी का मुख्य केंद्र था पानी में कभी न डूबने वाला जहाज। उन्होंने अपनी कहानी के जहाज का नाम रखा टाइटन और कहानी को नाम दिया, ‘द रैक ऑफ द टाइटन या फ्यूटिलिटी’। उन्होंने अपनी कहानी में शराबी कप्तान जॉन रोलैंड को मुख्य पात्र बनाया। दूसरा अहम पात्र थी मायरा सेल्फब्रिज नाम की महिला। जॉन, मायरा से बेइंतहा प्यार करता था। कहानी के मुताबिक, मायरा की शादी हो चुकी है और वो अपनी बेटी के साथ उस जहाज पर यात्रा कर रही है। जिसे बाद में जॉन ने बचाया था.
कहानी कुछ यूं थी कि… अचानक एक अफसर चिल्लाते हुए जहाज पर दौड़ रहा है। वह कह रहा है देखो आगे बर्फ है। अचानक टेलीग्राफ पर संदेश जारी होता है। धुंध के बीच 100 फीट ऊंचा हिमखंड नजर आने लगता है। जहाज उससे टकराता है और चारों तरफ रोने, चिल्लाने और बदहवासी का आलम छा जाता है।
हिमखंड के टकराने के बाद 75 हजार टन का टाइटन जहाज सीधा खड़ा हो गया। कुछ मिनट पहले जहाज से जिन 3 हजार यात्रियों की आवाजें आ रही थीं, वो अब खामोश हो गई।
मॉर्गन की यह कहानी 1898 में पब्लिश हुई। एक समय के बाद उसकी लेखन से होने वाली कमाई कम होने लगी तो वो मानसिक रोगियों के अस्पताल में नौकरी करने लगे, लेकिन मॉर्गन की कहानी उस समय चर्चा में आई जब 14 अप्रैल, 1912 को ब्रिटेन का टाइटेनिक जब हिमखंड से टकराया। उनकी कहानी और इस घटना में कई बातें हुबबू एक जैसी थीं।
मॉर्गन रॉबर्टसन ने एक और किताब लिखी है जिसका नाम है, ‘बियॉन्ड द स्पेक्ट्रम’. इसमें उसने अमेरिका और जापान के बीच होने वाले भविष्य के युद्धों का ज़िक्र किया था. दूसरे विश्व युद्ध में यह बात भी हक़ीक़त बनकर उभरी. बताते हैं कि उसने एटम बम के इस्तेमाल का भी ज़िक्र एक कहानी में किया था.
इसके बाद मॉर्गन रॉबर्टसन चर्चा में आ गया. पर इससे उसकी मुश्किलें आसान नहीं हुईं क्योंकि बतौर लेखक लोगों ने उसे नकार दिया था. टाइटैनिक के डूबने के तीन साल बाद मार्च, 1915 को मॉर्गन अटलांटिक सिटी होटल में ठहरा हुआ था कि उसे दिल का दौरा पड़ा और वह हमेशा के लिए ख़ामोश हो गया. हैरत की बात है टाइटैनिक जहाज अटलांटिक महासागर में ही डूबा था.