PFI:– देशभर में निरंतर हो रही घटनाएं हिजाब से लेकर हत्या तक सभी में PFI संगठन को शामिल देखा गया है। चाहे वह कर्नाटक में BJP युवा मोर्चा कार्यकर्ता की हत्या हो, या उत्तर प्रदेश के कानपुर में हिंसा, मध्य प्रदेश के खरगौन में सांप्रदायिक दंगा, राजस्थान के करौली में हिंसा, उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल का सिर कलम या फिर कर्नाटक के शिवमोगा में बजरंग दल कार्यकर्ता का कत्ल या फिर में उद्भेदित PFI के कई ट्रेनिंग केन्द्र । इन सभी घटनाओं में एक ही संगठन का नाम बार-बार आता रहा है PFI पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया. वहीं PFI अपने आप को एक सामाजिक संगठन बताता है जो दबे कुचले वर्ग केउत्थान के लिए काम करता है।
एक तरह हाल ही में पटना में पुलिस ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया. इनके पीएफआई से जुड़े होने का दावा किया है. अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी बिहार में PFI की जड़े तलाश रही है। वहीं दूसरी तरफ केरल हाईकोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में PFI को चरमपंथी संगठन बताया था। हिंदूवादी संगठन PFI को प्रतिबंधित करने की मांग करते रहे हैं. मीडिया लगातार केंद्र सरकार पर इस संगठन को प्रतिबंधित करने पर विचार करने के दवाब बनाती रही है.
हालांकि एक राज्य ऐसा भी है जहां PFI पर बैन लगा है। वह है झारखंड। झारखंड में लगे बैन को भी अदालत में चुनौती दी गई है। चर्चा में आया PFI 2010 में केरल में प्रोफेसर टीजे जोसेफ के हाथ काटने की घटना के बाद PFI चर्चा में आया था। प्रोफेसर जोसेफ पर एक प्रश्न पत्र में पूछे गए सवाल के जरिए पैगंबर मोहम्मद साहब के अपमान के आरोप लगे। जिसके बाद PFI कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर जोसफ के हाथ काट दिए। मीडिया से बातचीत में प्रोफ़ेसर जोसेफ ने बताया कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक आतंकवादी संगठन है जो इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा को फैलाता है. PFI ने समूचे भारत में आतंक की एक लहर पैदा की है। ये संगठन लोगों के शांतिपूर्वक जीवन और देश की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा बन गया है।
PFI पर आरोपों के छीटें
एक नहीं कई ऐसे मामले हैं जब PFI पर सवाल उठे और जिहाद को बढ़ावा देने के भी आरोप लगते रहे हैं। पहले 2018 में केरल के एर्नाकुलम में CFI के कार्यकर्ताओं ने वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के छात्र नेता अभिमन्यु की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। उस वक्त भी PFI सवालों के कटघरे में था। इस साल उडुपी में जब छात्राओं ने हिजाब को लेकर प्रोटेस्ट किए तो उनके पीछे भी PFI के छात्र संगठन CFI यानी केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया की रणनीति ही काम कर रही थी। देखा जाए तो दक्षिण राज्यों में यह संगठन उत्तर भारत के मुकाबले अधिक सक्रिय है। हाल ही में हुई कानपुर हिंसा उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की हत्या और पटना में संदिग्धों की गिरफ्तारी इन सभी मामलों में PFI का नाम आया है।
बात करें बिहार की, तो पटना में PFI जांच से जुड़े अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि PFI अनपढ़, बेरोजगार मुस्लिम युवाओं को टारगेट करके अपने साथ जोड़ रहा है। पुलिस के सामने यह भी आया कि संगठन युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी देने में जुटी है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में PFI काफी सक्रिय रही है लेकिन इसका कोई आधिकारिक दफ्तर शहर में नहीं है। पुलिस के मुताबिक बाबूपुरवा इलाके में PFI की गतिविधियां दिखती रही हैं। स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया यानी SIMI पर बैन लगने के बाद इससे जुड़े लोग भी PFI से जुड़ गए थे।
कानपुर में CAA-NRC विरोधी आंदोलन के दौरान PFI काफी सक्रिय रहा था और इसके पांच सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया था। इन सभी को बाबूपुरवा इलाके से ही गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के मुताबिक PFI ने CAA विरोधी आंदोलन की फंडिंग की थी। पुलिस ने इस संबंध में चार्जशीट भी दाखिल की थी। उदयपुर में टेलर कन्हैयालाल की हत्या के बाद पुलिस ने हत्यारों का कनेक्शन PFI से जुड़े होने का दावा किया था, लेकिन अब तक की जांच में PFI के खिलाफ कुछ सामने नहीं आया है।
जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक हत्यारों या उनके सहयोगियों के PFI से जुड़े होने के सबूत नहीं मिले हैं। उदयपुर में PFI का कोई दफ्तर भी नहीं है। हालांकि अधिकारी ये मानते हैं कि देश के बाकी हिस्सों की तरह उदयपुर में भी PFI का नेटवर्क हो सकता है। राजस्थान में PFI का नेटवर्क जांच एजेंसियों के रडार पर है। PFI के तार विदेशों से जुड़े होने और बाहर से फंडिंग की भी जांच की जा रही है।