उम्र के 66 वें पायदान लांघ चुके अधीर रंजन चौधरी का जीवन यात्रा बहुत ही दिलचस्प है. शैक्षणिक डिग्री के नाम पर कुल जमा 12वीं तक पढा लिखा अधीर रंजन अपनी राजनीति की शुरुआत नक्सलबाड़ी आन्दोलन से किया था. नक्सलबाड़ी आंदोलन जिसके मूल में अपराध और हड़पने की नीति काम कर रही थी, वहां से प्रशिक्षित होकर अधीर रंजन अपने इलाके में क्राईम के माध्यम सेपहले दहशत फैलाया और फिर अपनी धाक.
इलाके में थी रॉबिनहुड की छवि
लोग बताते हैं कि इनकी छवि इलाके में रॉबिनहुड की थी. रॉबिनहुड छवि को अधीर ने जमकर भुनाया और लोगों के बीच पैठ बैठाने में सफल रहा. आरोप तो यह है कि विश्वास में लेकर अधीर अपने एक परिचित जहां उसे पनाह मिलती थी, उनका रायफल लेकर फरार हो गया. वैसे, सबसे पहले अधीर का नाम लाल दिग्गी मर्डर केस में आया था. लाल दिग्गी मर्डर केस एक मुस्लिम युवक की हत्या से जुड़ा है जो युवक कभी अधीर का शागिर्द हुआ करता था. लेकिन अधीर अपने रसूख के बल पर इस मर्डर केस से बच निकला. लेकिन कहतें है न कि अपराधी हर बार नहीं बच सकता है अधीर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
राजनीति की अपनी शुरूआती दिनों में ही चौधरी को सीपीएम नेता की हत्या के मामले में जेल जाना पड़ा. जेल में अधीर की राजनीति परवान चढ़ी. बामपंथ से शुरुआत करने वाला अधीर कुछ दिनों तक फारवर्ड ब्लॉक और फिर आरएसपी होते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. यह नब्वे के दशक का अंतिम फेज चल रहा था जब अधीर कांग्रेस में अपनी पैठ मजबूत करने में जुट गए. वर्ष 1996 में अधीर चुनावी राजनीति में पैर रखते हैं और नबग्राम विधानसभा से MLA बनने में कामयाब हो जाते हैं.
चुनाव के दौरान जेल में सजा काट रहे थे अधीर
स्मरण रहे, इस चुनाव के दौरान अधीर रंजन जेल में सजा काट रहे थे. लोग बताते हैं कि जेल से ही चौधरी अपनी चुनावी भाषण को रिकार्ड करवाते और फिर उसे चुनावी सभा में मतदाताओं को सुनाया जाता. चौधरी मतदाताओं को भावनात्मक स्तर पर रिझाने में कामयाब रहे. नतीजा हुआ कि चुनाव परिणाम इनके पक्ष में गया और भारी मतों से जीत का सेहरा बंधा. बाद के दिनों में अधीर रंजन को मुर्शिदाबाद जिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. इनकी पैठ सामान्य से लेकर विशेष लोगों के बीच मजबूत होती गई. नतीजा हुआ कि मुर्शिदाबाद के विभिन्न नगरपालिकाओं और अन्य लोकल बार्डिज चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली.
सनद रहे कि इस कालखंड में पश्चिम बंगाल में तब बामपंथियों का राज था. ऐसे में बामपंथियों को धूल चटाने का पुरस्कार चौधरी को मिलना तय था. कांग्रेस पार्टी ने तब 1999 के लोकसभा चुनाव में अधीर चौधरी को बहरमपुर से कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया. अधीर रंजन लोकसभा सदस्य बनने में सफल रहे. कांग्रेस के लिए अधीर की यह जीत अप्रत्याशित थी क्योंकि 1951 से लेकर 1999 तक की चुनावी यात्रा में कांग्रेस हर बार लोकसभा चुनाव में पराजित हो जाती थी. इस जीत के बाद से अधीर रंजन की चौधराहट पार्टी में बननी शुरु हो गई.
पश्चिम बंगाल से चुनकर आने वाले इकलौते सांसद
जानकार बताते हैं इतनी सफलता के बाद भी अधीर रंजन का आपराधिक चरित्र बदलने के लिए तैयार नहीं था. नतीजा हुआ कि वर्ष 2005 में एक डबल मर्डर केस में चौधरी आरोपित होकर जेल चले गए जेल में एक महीना रहने के बाद जमानत पर बाहर आ सके. इसके बाद के वर्षों में भी अधीर चुनावी राजनीति में सफलता की सीढियां चढते हुए वर्ष 2019 तक पहुंच गए.
कांग्रेस के लिए यह समया भले बुरा काल रहा हो मगर चौधरी के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव परिणाम स्वर्णिम साबित हुआ. अधीर रंजन चौधरी 2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से चुनकर आने वाले इकलौते सांसद हैं. जाहिर है, कांग्रेस से चौधरी को सम्मान मिलना तय था. सोनिया गांधी ने चौधरी को संसद में कांग्रेस दल का संसदीय नेता नामित कर दिया. लेकिन कहते हैं लोगों की प्रकृति और आचरण कभी नहीं बदलता. अधीर चौधरी इसके सबसे बढ़िया उदाहरण हैं.
पीएम मोदी को कहा था नाली का कीड़ा
संसदीय दल के नेता चुने जाने के महज 48 घंटों के अन्दर संवाददाताओं से अपनी बातचीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नाली का कीड़ा बता दिया. मीडिया और पार्टी मे रगड़े जाने के बाद फिर पुरानी राग भाषाई समस्या के कारण ऐसा बोल गया, का बहाना बनाया. ताजा विवाद मैडम राष्ट्रपति से जुड़ा है जहां एकबार फिर चौधरी के कारण पार्टी को फजीहत उठानी पड़ी है.
नीजि जीवन भी बहुत संतोषजनक नहीं
अधीर रंजन का नीजि जीवन भी बहुत संतोषजनक नहीं माना जा सकता है. पर्यावरण प्रेमी अधीर रंजन की वैवाहिक जीवन से लेकर संतान तक की तस्वीर साफ नहीं है. मीडिया की मानें तो 18 वर्षीय इनकी इकलौती संतान, बेटी श्रेयसी ने छत से कूद कर आत्महत्या कर लिया था जबकि लोग कहते हैं कि श्रेयसी इनकी गोद ली गई बेटी थी. फिलहाल अधीर रंजन निसंतान हैं और अपना अधिकांश समय राजनीति और सोनिया गांधी की चाकरी में बिताते हैं.