कहानी एक ऐसी महिला की जिसके समर्पण और त्याग को आज भी राष्ट्र याद करता है। यह कहानी है उस महिला की जिसने अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बेशकीमती हीरा जुबिली डायमंड को गिरवी रख दिया। यह कहानी है उस महिला की जिसने बाल विवाह उन्मूलन से लेकर महिला मताधिकार तक और लड़कियों की शिक्षा से लेकर पर्दा प्रथा तक को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कहानी है उस महिला की जिसने देश की सबसे बड़े स्टील कंपनी, टिस्को (वर्तमान में टाटा स्टील) को बचाने में अपना योगदान दिया। जी हाँ हम बात कर रहे है एक सशक्त महिला और महिला सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक लेडी मेहरबाई टाटा की। लेडी मेहरबाई टाटा के त्याग और समर्पण के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। आज हम इस इस रिपोर्ट में महान लेडी मेहरबाई टाटा की जीवन से जुड़ी किस्सों के बारे में बताएँगे।
मेहरबाई टाटा सर जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे दोराबजी टाटा की पत्नी थी। मेहरबाई टाटा का जन्म 10 अक्टूबर 1879 को एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता होरमुसजी भाभा मैसूर राज्य के तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन थे और उनकी मां का नाम जेरबाई भाभा था। 16 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पूरी करने के बाद मेहरबाई ने अंग्रेजी और लैटिन भाषा भी सीखी। इसके बाद विज्ञान विषय पर आगे की पढ़ाई की। एक बार जमशेद जी टाटा मैसूर में भामा परिवार के घर गए तो उनकी नजर 18 वर्षीय मेहरबाई पर पड़ी जिन्हें प्यार से सब मेहरी पुकारते थे। जेएन टाटा को मेहरबाई काफी पसंद आयी और 14 फरवरी सन 1898 में सर दोराबजी टाटा ने 38 साल की आयु में 18 साल की मेहरबाई भाभा से विवाह कर लिया। साल 1910 में जब दोराबजी टाटा को सर की उपाधि मिली तो मेहरबाई को भी लेडी मेहरबाई के नाम से पुकारा जाने लगा।
एक समय था जब जापान टिस्को (टाटा स्टील) का सबसे बड़ा ग्राहक था। लेकिन तभी जोरदार भूकंप ने जापान में जान माल का भारी नुकसान कर दिया। ऐसे में जापान की ओर से स्टील की मांग घट गई। उत्पादन गिरता चला गया और सन 1924 में इसके बंद होने तक की नौबत आ गई। ऐसे में टाटा स्टील को बचाने और कर्मचारियों की वेतन देने के लिए दोराबजी टाटा ने बैंकों से बड़ा कर्ज लिया और इस कर्ज के लिए मेहरबाई टाटा ने 245 कैरेट का जुबिली हीरा सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक को गिरवी रख दिया।
टाटा कंपनी के उच्च पद पर आसीन और लेखक हरीश भट इस पर कई किताबें भी लिखी है। अपनी नवीनतम पुस्तक टाटा स्टोरीज (#Tatastories) में हरीश भट साहब ने बताया है कि कैसे लेडी मेहरबाई टाटा ने स्टील की दिग्गज कंपनी को दिवालिया होने से बचाया था। सर दोराबजी टाटा ने अपनी पत्नी लेडी मेहरबाई के लिए लंदन के व्यापारियों से 245.35 कैरेट जुबली हीरा खरीदा था जो कि कोहिनूर (105.6 कैरेट, कट) से दोगुना बड़ा है। 1900 के दशक में इसकी कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी। यह बेशकीमती हार लेडी मेहरबाई के लिए इतना खास था कि वह इसे सिर्फ स्पेशल मौकों पर ही पहनती थीं। लेकिन साल 1924 में हालात पूरी तरह से बदल गए। भट ने इसमें है कहा कि गहन संघर्ष के उस समय में एक भी कर्मचारियों की छंटनी नहीं की गई थी।
लेडी मेहरबाई टाटा उन लोगों में से एक थीं, जिनसे 1929 में पारित शारदा अधिनियम या बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम के लिए परामर्श किया गया था। उन्होंने भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इसके लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया। वह राष्ट्रीय महिला परिषद और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी हिस्सा थीं। 29 नवंबर, 1927 को लेडी मेहरबाई ने मिशिगन में हिंदू विवाह विधेयक के लिए एक मामला बनाया। उन्होंने 1930 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के लिए समान राजनीतिक स्थिति की मांग की। लेडी मेहरबाई टाटा भारत में भारतीय महिला लीग संघ की अध्यक्ष और बॉम्बे प्रेसीडेंसी महिला परिषद की संस्थापकों में से एक थीं। मेहरबाई के नेतृत्व में भारत को अंतरराष्ट्रीय महिला परिषद में शामिल किया गया था।