Headline:- आखिर किसे पता था बचपन में स्कूल से भागने वाला बजरंग, कुश्ती के लिए बजरंग बली साबित होगें… आज अपने नाम कामयाबी के किस्से लिखने वाले बजरंग कुश्ती को नई पहचान दिया है और देश के लिए मेडलों की बरसात कर दिया है.
Bajrang Puniya:- मिट्टी से सना बदन, घंटों वर्जिश और अनुशासन…. इन सबका मेल और संतुलन कई सालों तक चलता है। फिर एक दिन आता है जब पहलवान कुश्ती के लिए रिंग में उतरता है। रिंग में सब कुछ सिनेमाई नहीं होता है। यहां टक्कर बराबर की होती है। एक गलत दांव किसी भी पहलवान को फिर से जीरो पर ले आती है। कॉमनवेल्थ गेम्स में देश को गोल्ड दिलाने वाले हरियाणा के रेसलर बजरंग पुनिया बचपन में पढ़ाई में पिछड़े तो खेलों में अव्वल थे।
वह स्कूल से बचने के लिए अखाड़े जाने लगे। वहां कुश्ती जीतने पर मिलने वाले इनाम से उन्हें प्रोत्साहन मिला और वह पहलवान बन गए। फिर से वही कसरत ट्रायल्स और अगले इवेंट की तैयारी। पहलवान कद-काठी में भले बड़ा हो लेकिन असल में वह बड़ा, जीत से बनता है। कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 के आठवें दिन भारतीय पहलवानों ने बता दिया कि रिंग के महारथी वे ही हैं। बजरंग कहते हैं हरियाणा के कल्चर में कुश्ती है। यहां के गांव के हर घर में आपको लंगोट टंगा मिल जाएगा।
बजरंग पूनिया अपनी जीत से ज्यादा अपने परफॉर्मेंस से खुश हैं। उनके लिए टोक्यो ओलिंपिक से अब तक का समय काफी उतार चढ़ाव वाला रहा है। शुक्रवार रात को फाइनल मुकाबला जीतने के बाद उन्होंने कहा कि गोल्ड सेम होता है, चाहे 2018 में जीता हो या अब 2022 में, पर इंजरी के बाद उन्होंने जो कमबैक किया है, वो उनके लिए काफी अच्छा है।
टोक्यो ओलिंपिक गेम्स से एक महीने पहले उनको इंजरी हो गई थी। पहले उनका गेम एग्रेसिव होता था, इस बार कॉमनवेल्थ में वे एग्रेसिव के साथ अटैकिंग और डिफेंसिव तरीके से प्रिपेयर होकर आए थे।
सोनीपत निवासी बजरंग पूनिया बीते 8 सालों से भारत के ऐसे पहलवान रहे हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल स्तर पर लगातार और निरंतरता के साथ कामयाबी हासिल की है। टोक्यो ओलिंपिक में उनको सबसे दमदार खिलाड़ी माना जा रहा था, लेकिन मैच से करीब एक महीना पहले हुई इंजरी के कारण वो अच्छा नहीं खेल पाए थे। हालांकि, बाद में कांस्य पदक के लिए हुआ मुकाबला जीत लिया। इस हार से टूट गए थे। 2018 के कॉमनवेल्थ में पूनिया गोल्ड मेडल जीत चुके हैं।
इंजरी को रिकवर करने में उनको काफी समय लगा है। इससे पहले उन्होंने जो भी टूर्नामेंट खेले, उनमें अपनी परफॉर्मेंस से संतुष्ट नहीं थे। आज उनके लिए खुशी का दिन है। खुशी इसलिए नहीं कि गोल्ड जीता है, बल्कि इसलिए कि वे अच्छा खेल पाए।
बजरंग ने बताया कि कि उनकी कोशिश थी कि वह अपनी तरफ से बेस्ट खेलें। पहले एग्रेसिव खेलते थे, लेकिन इंजरी के बाद काफी चेंज आ गया था। अब प्रयास है कि दोबारा उसी पर आएं। उन्होंने कहा कि कोई भी मैच होता है तो कोई भी खिलाड़ी कमजोर नहीं होता। जो भी आता है, अपने देश के लिए मेडल जीतने के लिए आता है। आज उनकी फाइट बहुत अच्छी हुई है। अब आगे जो टूर्नामेंट आने वाले हैं, उनमें अच्छा परफॉर्मेंस कर देश के लिए मेडल जीते, इसकी तैयारी वे जमकर करेंगे।
बजरंग पूनिया ने बातचीत में ओलिंपिक पदक विजेता सुशील कुमार का धन्यवाद किया। सुशील फिलहाल सोनीपत के ही एक खिलाड़ी सागर पहलवान की हत्या के आरोप में जेल में है। बजरंग ने कहा कि हमारे जो पुराने खिलाड़ी हैं, चाहे रेसलिंग में लगा लीजिए या फिर किसी भी फील्ड में, जिन्होंने देश के लिए अच्छा किया है, उनको देखकर ही सीखा हैं। रेसलिंग को जिंदा करने वाले सुशील भाई थे। उन्होंने जब ओलिंपिक में मेडल जीता, इसके बाद ही रेसलिंग की पहचान बनी। इससे पहले रेसलिंग को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था।
पुरुषों की फ्रीस्टाइल 65 किलो भार वर्ग के फाइनल में बजरंग पूनिया ने कनाडा के एल. मैकलीन को 9-2 मात दी। पहले हाफ में बजरंग ने चार अंक लिए, फिर दूसरे हाफ में मैकलीन ने दो प्वाइंट लेकर वापसी की कोशिश की लेकिन बजरंग ने उन्हें और मौका ही नहीं दिया। बजरंग ने अपने सभी मैच काफी दबदबे के साथ खेले और अधिकांश मुकाबलों में उन्होंने सामने खड़े पहलवान को दो मिनट में हरा दिया था। यह राष्ट्रमंडल खेल में बजरंग का लगातार दूसरा गोल्ड मेडल रहा। किसे पता था कि स्कूल से भागकर पूनिया जहां जाते हैं वहीं से वह कामयाबी की नई इबारत लिखेंगे।