नूपुर शर्मा विवाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी पर आम जनता खुल कर आपत्ति जता रही है। सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे बी पारदीवाला के टिप्पणी की जमकर आलोचना की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट आज देश में घटित होने वाली तालिबानी हत्याओं के लिए नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहरा रहा है, तो उनसे ये सवाल पूछना बनता है कि मी लॉर्ड आप 1975 में कहां थे? जब आपातकाल लगा था? 1990 में जब कश्मीरी पंडितों का जेनोसाइड (Genocide) हो रहा था तब आप कहां थे?
और रही बात जिहादियों को इंस्टिगेट करने की तो क्या सोमनाथ, ज्ञानवापी, मथुरा और अनगिनत हिंदुओं पर जिहादी आक्रमण के लिए नूपुर शर्मा टाइम ट्रैवल कर जिहादियों को उकसाने गई थीं? जिस तरह उन्होंने कन्हैयालाल के हत्यारों को उकसाया था? मी लॉर्ड लूस टंग नूपुर शर्मा का नहीं बल्कि जिस तरह की बात आपने कही है उसे लगता है कि लूस टंग आपका है।
वहीं जस्टिस पारदीवाला सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की बात कर रहे हैं क्योंकि जनता उनपर सवाल उठा रही है। सोशल मीडिया के साथ-साथ केरल हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रवींद्रन के पत्र में 15 रिटायर्ड जज, 77 रिटायर्ड नौकरशाह, 25 रिटायर्ड आर्मी अधिकारियों ने हस्ताक्षर कर, कहा है कि इस टिप्पणी से सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा लांघ दी है।
यही नहीं अब कॉलेजियम सिस्टम के माध्यम से चुने गए न्यायाधीशों की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप यह लग रहे हैं कि जस्टिस सूर्यकांत पर भ्रष्टाचार, जातिवाद और संपत्ति एकत्र करने जैसे आरोपों के बावजूद कॉलेजियम ने उन्हे ऊचें पद पर नियुक्त किया। कॉलेजियम ने न केवल आरोपों को नजरंदाज किया बल्कि प्राथमिक जांच से भी इनकार कर दिया। आप सोच रहे होंगे की ये कॉलेजियम क्या है? चलिए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं….
भारत की न्यायपालिका के आंकड़े सिद्ध करते है कि भारत की न्यायिक प्रणाली में सिर्फ कुछ घरानों का ही कब्ज़ा रहा गया है। साल दर साल इन्ही घरानों से आये वकील और जजों के लड़के और लड़कियां ही जज बनते रहते हैं। जिस व्यवस्था के तहत सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियां की जातीं हैं उसे “कॉलेजियम सिस्टम” कहा जाता है।
आपको बताएंगे कि कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है और यह भारत की न्याय व्यवस्था के लिए क्यों ठीक नहीं है।
कॉलेजियम वकीलों या जजों के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजती है। इसी तरह केंद्र भी अपने कुछ प्रस्तावित नाम कॉलेजियम को भेजती है। केंद्र के पास कॉलेजियम से आने वाले नामों की जांच की जाती है और रिपोर्ट वापस कॉलेजियम को भेजी जाती है, सरकार इसमें कुछ नाम अपनी ओर से सुझाती है। कॉलेजियम केंद्र द्वारा सुझाव गए नए नामों और कॉलेजियम के नामों पर केंद्र की आपत्तियों पर विचार करके फाइल दुबारा केंद्र के पास भेजती है। इस तरह नामों को एक – दूसरे के पास भेजने का यह क्रम जारी रहता है और देश में मुकदमों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है।
यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जब कॉलेजियम किसी वकील या जज का नाम केंद्र सरकार के पास “दुबारा” भेजती है तो केंद्र को उस नाम को स्वीकार करना ही पड़ता है, लेकिन “कब तक” स्वीकार करना है इसकी कोई समय सीमा नही है। इससे न्यायपालिका में भाई-भतीजा वाद की तरह
इस आधार पर यह बात स्पष्ट हो गया है कि देश की मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था “पहलवान का लड़का पहलवान” बनाने की तर्ज पर “जज के लड़के को जज” बनाने की जिद करके बैठी है। भले ही इन जजों से ज्यादा काबिल जज न्यायालयों में मौजूद हों।
इस सिस्टम को बदलने के लिए कई लोगों ने कोशिश की थी। खासकर भाजपा के दिग्गज नेता स्वर्गीय अरुण जेटली ने इस कॉलेजियम सिस्टम और न्यायपालिका में चल रहे इस भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई थी। इसके साथ ही UPA सरकार ने न्यायपालिका में चल रहे इस भाई-भतीजावाद को खत्म करने के लिए एक विफल कोशिश की थी। UPA सरकार ने 15 अगस्त 2014 को कॉलेजियम सिस्टम की जगह NJAC यानि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को NJAC कानून को असंवैधानिक करार दे दिया था। इस प्रकार वर्तमान में भी जजों की नियुक्ति और तबादलों का निर्णय सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम ही करता है।
NJAC का गठन 6 सदस्यों की सहायता से किया जाना था जिसका प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बनाया जाना था इसमें सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठ जजों, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी 2 जानी-मानी हस्तियों को सदस्य के रूप में शामिल करने की बात थी। NJAC में जिन 2 हस्तियों को शामिल किए जाने की बात कही गई थी, उनका चुनाव सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली कमेटी करती। इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा आपत्ति थी।
वहीं जब माय लार्ड किसी भी मुद्दे पर टिप्पणी करते हैं तो देश के नागरिक चुपचाप उसे सुनते और मानते हैं। लेकिन जब जज को किसी मुद्दे पर जज किया जाता है तो यह बात उन्हे नहीं जचती है। न्याय प्रणाली में कॉलेजियम सिस्टम प्रथा भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। जिस तहर बिजनस में क्रोनी कपटालिस्म और राजनीति में भाई-भतीजा वाद है ठीक उसी तरह से न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम भी एक बीमारी है जो न्यायपालिका को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है और इसमें सुधार की जरूरत है।