इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शबाना बानो बनाम इमरान खान के मामले में निर्धारित कानून को दोहराते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि समाप्त होने के बाद भी जब तक वह पुनर्विवाह नहीं करती, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार है।
जस्टिस करुणेश सिंह पवार की खंडपीठ ने मई 2008 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, प्रतापगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को अनुमति देते हुए जनवरी, 2007 में पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए उक्त टिप्पणी की।
हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओ के हक़ में बहुत बड़ा फैसला लिया है तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाओं को भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति से गुज़ारा-भत्ता पाने का अधिकार है और वे इद्दत की अवधि के बाद भी इसे प्राप्त कर सकती हैं.
अदालत ने यह निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि यह हक़ उन्हें तभी तक मिलेगा जब तक वह दूसरी शादी नहीं करती है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, एक मुस्लिम महिला ने अपने और अपने दो नाबालिग बच्चों के लिए गुजारे- भत्ते की मांग करते हुए निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया था. ट्रायल कोर्ट ने 23 जनवरी, 2007 को आदेश पारित करने की तारीख से उन्हें भरण-पोषण का आदेश दिया था।
अब तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी अपने पति से गुजारा भत्ता पा सकेंगी। इद्दत का तात्पर्य इस्लाम में जब मुस्लिम महिलाओ का तलाक होता है या उसके पति का निधन होता है तो उसके बाद का कुछ समय पत्नी को अकेले गुजरना पड़ता है उसी को इद्दत कहते है।
इलाहबाद हाई कोर्ट ने फैसला लिया है कि अगर मुस्लिम महिलाओ का इद्दत का समय समाप्त हो गया है और उसने दूसरी शादी नहीं किया है। तो वो अपने पति से CRPC section 125 के तहत भत्ते का मांग कर सकती है।
उन्होंने शबाना बानो के मामले में आये हुए फैसले पर भरोसा जताया। कानूनी प्रावधानों के तहत भरण-पोषण पाने के लिए तलाकशुदा मुस्लिम महिला सक्षम न्यायालय में अर्जी दायर कर सकती हैं।