उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में शुक्रवार यानि आज सुनवाई होनी थी। सुनवाई नौ वादों और करीब 15 प्रार्थना पत्रों पर होनी थी, लेकिन एक वकील की मौत के कारण अदालत में शोक अवकाश घोषित कर दिया गया। इसके कारण सुनवाई नहीं हो सकी। अब कोर्ट दो मामले में 5 जुलाई और सात केसों में 15 जुलाई को सुनवाई करेगा।
श्रीकृष्ण विराजमान और ठाकुर केशवदेव के भक्त बनकर अदालत में याचिका दाखिल करने वाले वादीगण सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में एक साथ सामने होंगे। सभी वादों में श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन से कब्जा हटाने की मांग की गई है। इस मामले में पिछले दिनों श्री कृष्णजन्म स्थान सेवा संतान के सचिव कपिल शर्मा ने भी प्रेसवार्ता के जरिए अपना पक्ष भी जाहिर किया था।
कई मामले सिलसिले वार मथुरा की अदालत में पहुंच जाने के बाद न्यायालय ने सभी मामलों की सुनवाई के लिए एक जुलाई की तारीख तय की थी। जमीन से कब्जा हटवाने के लिए सबसे पहला वाद 25 सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में दायर किया था, जिसमें यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट व श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया गया।
5 और 15 जुलाई को मथुरा कोर्ट में इन नौ केस पर सुनवाई होनी है।
ठाकुर केशव देव महाराज विराजमान मंदिर कटरा केशव देव में जय भगवान गोयल, सौरभ गौड़, राजेंद्र माहेश्वरी व महेंद्र प्रताप सिंह वाद संख्या 950/20
हिंदू आर्मी चीफ मनीष यादव के वाद संख्या 152/21.
मंदिर कटरा केशवदेव के सेवायत पवन कुमार शास्त्री के वाद संख्या 107/20.
अनिल कुमार त्रिपाठी के वाद संख्या 252/21.
दिनेश चंद शर्मा के वाद संख्या 174/21.
जितेंद्र सिंह विशेन के वाद संख्या 620/21.
गोपाल गिरी के वाद संख्या 683/21.
पंकज सिंह के वाद संख्या 777/21.
रंजना अग्निहोत्री आदि के वाद में होनी है सुनवाई.
इससे पहले श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्याय के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि उन्होंने अधिवक्ता श्रीभगवान शर्मा के माध्यम से सिविल जज सीनियर डिवीजन ज्योति सिंह की अदालत में अर्जी देकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ भू-सम्पति से संबंधित सभी मामलों के तथ्य तथा उनकी प्रकृति एक ही समान होने के कारण सभी मामले को एक साथ सुने जाने की मांग रखी थी। जिस पर सुनवाई के लिए एक जुलाई की तारीख तय की गई थी।
चलिए आपको बताते हैं क्या है मामला
दरअसल, मथुरा कोर्ट में दायर की गई कई याचिकाओं में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्म स्थान कंस का कारागार था। कंस का कारागार (श्रीकृष्ण जन्मस्थान) शाही ईदगाह के नीचे है। हिंदुओं के लिये भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पवित्र तीर्थ स्थान है। विवादित जमीन को लेकर 1968 में हुआ समझौता गलत था। कटरा केशवदेव की पूरी 13.37 एकड़ जमीन हिंदुओं की थी। यह हिंदुओं को मिलनी चाहिए।
साल 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया था कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा। ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नामक संस्था का गठन किया गया था। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें (मुस्लिम पक्ष को) उसके बदले नजदीक ही जमीन दे दी गई।
Place of worship Act 1991 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर पर धार्मिक अतिक्रमण के खिलाफ दायर केस को लेकर सबसे बड़ी रुकावट बताया जा रहा है। साल 1991 में नरसिम्हा राव सरकार में पास Act के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसे बदला नहीं जा सकता। यानी तब जिस धार्मिक स्थल पर जिस संप्रदाय का अधिकार था, आगे भी उसी का रहेगा। इस एक्ट से अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि को अलग रखा गया था।
धार्मिक-पौराणिक शास्त्रों और ऐतिहासिक दावों के मुताबिक मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उसी स्थान पर उनके प्रपौत्र बज्रनाभ ने श्रीकृष्ण को कुलदेवता मानते हुए मंदिर बनवाया। सदियों बाद महान सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने वहां भव्य मंदिर बनवाया। उस मंदिर को मुस्लिम लुटेरे महमूद गजनवी ने साल 1017 में आक्रमण करके तोड़ा। इसके बाद मंदिर में मौजूद कई टन सोना लूटकर ले गया। इसके बाद साल 1150 में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में वहां एक भव्य मंदिर बनवाया गया। इस मंदिर को 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया।
इसके 125 साल बाद जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने उसी जगह श्रीकृष्ण के भव्य मंदिर का निर्माण कराया। श्रीकृष्ण मंदिर की भव्यता से बुरी तरह चिढ़े औरंगजेब ने 1669 में मंदिर तुड़वा दिया और मंदिर के एक हिस्से के ऊपर ही ईदगाह का निर्माण करा दिया। इस शाही ईदगाह को ही अतिक्रमण बताते हुए हटाने की मांग की जा कर रही है।