महामहिम द्रौपदी मुर्मु पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन की टिप्पणी ने ‘राष्ट्रपति’ जैसे संवैधानिक पद के नाम को लेकर नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने जिस तरह से राष्ट्रपति के स्थान पर मुर्मु को राष्ट्रपत्नी कहा, कई लोग उसे संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन मान रहे हैं। वहीं कई महिला अधिकार संगठन यह मांग भी करने लगे हैं कि इस पद के लिए कोई ऐसा नाम होना चाहिए, जो ज्यादा जेंडर न्यूट्रल हो, यानी उसके उच्चारण में कोई लैंगिक भेद न प्रतीत हो।
अंगरेजी में प्रेसिडेंट आफ़ इंडिया को जब हिंदी में लिखने की बात आई थी तब देश में इस पर बहुत लंबी बहस, विचार-विमर्श हुआ था। जुलाई, 1947 में इस बात पर बहस हुई थी कि प्रेसिडेंट आफ इंडिया के लिए हिंदी में क्या शब्द प्रयोग किया जाए। उस समय सरदार, प्रधान, नेता और कर्णधार जैसे कई शब्दों का विकल्प आया था। हालांकि इनमें से किसी शब्द पर सहमति नहीं बनी।
सत्ता में बैठे लोग जब इस पर एक राय नहीं हो सके तब देश के लोगों को भी इस प्रक्रिया में शामिल करते हुए इस प्रेसिडेंट आफ़ इंडिया शब्द के लिए हिंदी में कोई उपयुक्त शब्द देने का सुझाव मांगा गया। क्यों कि अध्यक्ष, सभापति आदि अनुवादिक शब्द वह प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे थे, जो छोड़ना चाहिए था।
फिर जनता ने, अख़बारों ने, सामाजिक संगठनों आदि ने विभिन्न नामों के सुझाव दिए। लेकिन बात बन नहीं रही थी। कि तभी बनारस से प्रकाशित होने वाले दैनिक आज ने एक संपादकीय लिख कर भारत सरकार को प्रेसिडेंट आफ़ इंडिया के लिए हिंदी में राष्ट्रपति शब्द सुझाया। और सभी ने सर्वसम्मति से इस शब्द को स्वीकार कर लिया। आज अख़बार पहले भी बहुत महत्वपूर्ण अख़बार रहा था पर राष्ट्रपति शब्द देने के बाद इस की प्रतिष्ठा में चार चांद लग गए।
हालांकि दुनियाभर में पिछले कई दशकों से कुछ पदों और काम के बतौर इस्तेमाल होने वाले शब्दों के लिए महिलावादी संगठनों ने एतराज जाहिर कर जेंडर न्यूट्रल शब्दों के इस्तेमाल पर जोर देना शुरू कर दिया। जैसे- फायरमैन की जगह फायरफाइटर, चेयरमैन की जगह चेयरपर्सन, लेडी डॉक्टर की जगह केवल डॉक्टर, स्टीवर्ड की जगह फ्लाइट अटैंडेंट, बारमैन या बारमेड की जगह बारटेंडर जैसे शब्द प्रयोग में लाए जाने लगे। कुछ और शब्दों पर बहस होती रही। उन्हें बदलकर दूसरी तरह से लिखने या बोलने का काम शुरू हुआ। मसलन – बिजनेसमैन की जगह बिजनेसपर्सन, कैमरामैन की जगह कैमरा आपरेटर, कांग्रेसमैन की जगह मेंबर ऑफ कांग्रेस।