भारत में धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण कहे जाने वाले तथाकथित गंगा-जमुनी तहज़ीब की गंगोत्री अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती अपनी जिहादी मानसिकता खुलेआम दिखा रहा है। जिसमें वो पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की गर्दन काटकर लाने वाले को अपनी पूरी संपत्ति देने का ऐलान कर रहा है। वहीं मामले में दरगाह थाना पुलिस ने बताया कि इस तरह का वीडियो वायरल कर लोगों को हत्या करने के लिए उकसाने की कोशिश की जा रही है, जो एक बड़ा अपराध है। देखिए ये वीडिओ कि उसने क्या कहा..
……. This has to be stopped …. 🛑
"I'll Offer my house as bounty for beheading Nupur Sharma"
Salman Chishty, one the Khadim of Ajmer Dargah releases video.@TarekFatah@PMOIndia@AmitShah@myogiadityanath@Uppolice pic.twitter.com/tf2kj2Osbh
— D_ARSHI💫 (@Dakku1811) July 5, 2022
देखा आपने कैसे अजमेर शरीफ दरगाह का खादिम होने बावजूद ये ऐसी जिहादी मानसिकता दिखा रहा है। दरअसल, गरीब नवाज़ कहे जाने वाले मोइनूद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम का ऐसा बयान देना आपको अचंभित कर रहा होगा लेकिन, कहा जाता है कि जैसा भगवान होता है वैसा ही भक्त होता है।
‘शांतिपूर्ण सूफीवाद’ और अब के समय में कहे जाने वाली ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ का मिथक, कई सदियों तक इस्लामिक ‘विचारकों’, वामपंथी इतिहासकारों और अब के वामपंथी नेताओं द्वारा खूब फैलाया गया है। वास्तविकता इन दावों से कहीं अलग और विपरीत है। वास्तविकता यह है कि सूफी संत मोइनूद्दीन चिश्ती भारत में इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने, ‘काफिरों’ के धर्मांतरण और इस्लाम को स्थापित करने के उद्देश्य से लाया गया था। चाहे वो कितनी भी क्रूरता के साथ किया जाए।
मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, उसने वहां पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गौमांस खाते थे।
इस अना सागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के पाठ के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि यह सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार के लिए आए थे, जिसके लिए उन्होंने हिन्दुओं के साथ हर प्रकार का उत्पीड़न स्वीकार किया।
जब गरीब नवाज़ ही हिंदुओं के प्रति ऐसी नफरत रखते थें तो ये तो केवल उनका खादिम है। गंगा-जमुनी तहज़ीब की गंगोत्री भी कहां से निकली है ये भी ध्यान देने वाली बात है। सेक्युलरिज़्म यानि धर्मनिरपेक्ष शब्द को भारत में जगह देने वाली राजनीतिक पार्टी ने अपने सियासी फायदे के लिए सेकुलर शब्द को धार्मिक रूप दिया है। जिससे वे कई दशकों से इस गंगा-जमुनी तहज़ीब के नाम पर वोट बैंक साधते आ रहे हैं।
लेकिन अब अजमेर शरीफ धीरे-धीरे अपने तहज़ीब का रंग दिखा रहा है। अगर अगली बार धिम्मी और सेक्युलर वहां चादर चढ़ाने जाएं, तो आपको इस हकलाने वाले सूफी खादिम सलमान चिश्ती से मिलने के लिए एक मानसिक नोट बनाना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता का दिखावा करने के लिए उन्हें धन्यवाद देना चाहिए।