पड़ोसी देश श्रीलंका आजादी के बाद सबसे खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। लोकलुभावन योजनाओं के कारण देश आज दाने-दाने को मोहताज हो गया है। श्रीलंका की जनता सड़कों पर उग्र प्रदर्शन कर रही है। राष्ट्रपति देश छोड़कर भाग चुके हैं। श्रीलंका आज अपने आर्थिक और राजनीतिक संकट से उबरने के लिए चारों तरफ मदद के लिए हाथ फैलाए खड़ा है। ईंधन की कमी से स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं, क्योंकि छात्रों और शिक्षकों के लिए आवागमन के साधन नहीं होने से पहुंचना मुश्किल है। दवा से लेकर खाने पीने के सामान तक की कीमत कई गुना बढ़ गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी उसे राहत पैकेज नहीं मिल रहा, क्योंकि एक तो उसकी रैंकिंग कम हो गई है, दूसरी ताजा राजनीतिक हालात से जो अस्थिरता पैदा हुई है, वह उसकी राह में रोड़ा बन रही है।
देखा जाए तो आज जो हालात से श्रीलंका के हैं, वह कहीं ना कहीं रूस और यूक्रेन के युद्ध के वजह से है। हालांकि रसिया और यूक्रेन के युद्ध से श्रीलंका अकेला ऐसा देश नहीं है, जिसकीअर्थव्यवस्था में पूरे तरीके से भूचाल आ गया हो, इनमें लाओस से पाकिस्तान और वैनेजुएला से पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी भी शामिल है। इनकी भी अर्थव्यवस्था डगमगा रही है। अगर सावधानी नहीं बरती गई और अर्थव्यवस्था को लेकर कदम नहीं उठाए गए तो इनकी भी हालत श्रीलंका जैसी हो सकती है।
कोरोना ने तोड़ी थी अर्थवयवस्था की कमर
बता दे की इससे पहले कोरोना वायरस महामारी के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगा गई थी और फिर कोरना महामारी से राहत मिलते ही रसिया-यूक्रेन युद्ध के कारण कई देशों की अर्थव्यवस्था बद से बदतर हो गई है। इन दोनों देशों से जो भी ईंधन और खाद्यान्न का आयात होता था उसमें रुकावट आ गई है जिस वजह से उन सभी सामानों की कीमत कीमत आसमान छू रही है।
संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल क्राइसिस रिस्पांस ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 94 देशों की 1.6 अरब की आबादी खाद्यान्न, ऊर्जा या आर्थिक संकटों को झेल रही है। कई देशों की 1.2 अरब की आबादी बद् से बद्तर हालत में है। चरमराती अर्थव्यवस्था वाले देशों में इसके लिए एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार, गृह युद्ध, तख्तापलट या अन्य आपदाएं भी जिम्मेदार हैं।
जब कोई देश विदेशी क़र्ज़ समय से नहीं चुका पाता यानी उसके पास इतनी विदेशी मुद्रा नहीं बचती कि वो क़र्ज़ अदा कर पाए तो वह डिफॉल्टर हो जाता है। ऐसा ही श्रीलंका के मामले में हुआ। ढहते हुए श्रीलंका को पूरी दुनिया देख रही है। लेकिन अर्थव्यवस्था तबाह होने की कहानी केवल श्रीलंका की ही नहीं है। कई ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था बदहाली के कगार पर पहुंच गई हैं। जल्दी कदम नहीं उठाए गए तो इनकी स्थिति भी श्रीलंका जैसी हो सकती है।
अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में 2 दशकों बाद तालिबान की सत्ता स्थापित होने की वजह से विदेशी मदद रुक गई। बाइडन प्रशासन ने अफगानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में 7 बिलियन डॉलर को फ्रीज कर दिया है। 39 मिलियन में से आधी आबादी जीवन संकट के रूप में खाद्यान्न असुरक्षा से जूझ रही है। तालिबान सरकार प्रतिबंधों, बैंकों से लेन-देन पर रोक समेत ठप व्यापारिक गतिविधियों से जूझ रही है। डॉक्टरों, नर्सों, शिक्षकों समेत नौकरशाहों को कई-कई महीने वेतन से वंचित रहना पड़ रहा है। हाल ही में आए भूकंप ने इनके संकट को और बढ़ा दिया है।
अर्जेंटीना
अर्जेंटीना का केंद्रीय बैंक आर्थिक संकट से जूझ रहा है। मुद्रा के अवमूल्यन से विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खत्म हो रहा है। प्रत्येक 10 में से चार अर्जेंटीनावासी गरीब है। इस साल महंगाई की दर 70 फीसदी ज्यादा रहने की आशंका है। आज की तारीख में अर्जेंटीना के हालात ऐसे हैं कि लाखों अर्जेंटीनावासी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से सूप पीकर अपना पेट पाल रहे हैं। इन कल्याणकारी योजनाओं को सामाजिक आंदोलनों के बाद लागू किया गया है। अर्जेंटीना को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 44 बिलियन डॉलर का राहत पैकेज मिलने वाला है। विशेषज्ञों की मानें तो इस राहत पैकेज से जुड़ी कठिन शर्तों से इस देश की अपने पैरों पर फिर खड़े होने की संभावनाओं पर और काले बादल छा जाएंगे।
पाकिस्तान
पाकिस्तान भी IMF के सामने हाथ फैलाए खड़ा है। IMF ने 6 बिलियन डॉलर के राहत पैकेज को इमरान सरकार के जाते ही रोक लिया। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से ईंधन की कीमतें आम आदमी के हाथों से बाहर हो चुकी हैं। महंगाई 21 फीसदी बढ़ी है। आलम यह है कि इम्पोर्टेड चाय पर खर्च को कम करने के लिए पाकिस्तान के एक मंत्री ने लोगों से कम चाय पीने की अपील की है। एक पाकिस्तानी रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 30 फीसदी गिरी है। इससे इतर IMF की शर्तों को मानते हुए शहबाज सरकार ने ईंधन की कीमतें बिना कुछ सोचे बढ़ाईं और सब्सिडी खत्म कर दी। प्रमुख उद्योगों पर 10 फीसद सुपर टैक्स थोपा है ताकि वित्तीय स्थिति को संभाला जा सके। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 13.5 बिलियन डॉलर रह गया है।
इजिप्ट
अप्रैल में ही इजिप्ट में महंगाई दर 15 फीसदी बढ़ गई थी। 103 मिलियन की आबादी के एक-तिहाई लोग शोषित-वंचित तबके में तब्दील होकर गरीबी में गुजर-बसर कर रहे हैं। इन पर सुधारवादी योजनाओं की वजह से पहले ही पहाड़ टूटा हुआ है। खर्च रोकने के फेर में राष्ट्रीय मुद्रा का बार-बार अवमूल्यन हो रहा है। ईंधन, पानी और बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी में कटौती की गई है। इजिप्ट को विदेशी कर्ज चुकाने में दिक्कत आ रही है। विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया है। इजिप्ट के पड़ोसी देशों मसलन सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात ने 22 बिलियन डॉलर समेत प्रत्यक्ष निवेश के रूप में मदद की है।
लेबनान
जैसे श्रीलंका के लिए मुद्रा का जबरदस्त अवमूल्यन, चरम पर महंगाई, बढ़ती भुखमरी, आवश्यक वस्तुओं की कमी, गैंस-ईंधन के लिए लंबी-लंबी कतारें आम बात है, कुछ ऐसी ही स्थिति लेबनान की हैै। हालांकि इसके लिए लंबा चला गृह युद्ध ज्यादा जिम्मेदार है। आतंकी हमले और नाकाम सरकार स्थिति में सुधार लाने की गुजाइंश पर पानी फेर रहे हैं। 2019 में थोपे गए भारी-भरकम करों को लेकर सत्ता-प्रतिष्ठान के प्रति उस साल लेबनान पर 90 बिलियन डॉलर का कर्ज था, जो उसकी जीडीपी का 170 फीसद है। जून 2021 में लेबनानी मुद्रा की कीमत 90 फीसदी कम हो गई है। विश्व बैंक का भी मानना है कि बीते 150 सालों में लेबनान का संकट बेहद खराब है।
म्यांमार
कोरोना संक्रमण और फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद सैन्य शासन से उपजी राजनीतिक अस्थिरता ने म्यांमार की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट की है, तख्तापलट के बाद पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर प्रतिबंध और थोप दिए हैं। ये प्रतिबंध अधिकतर कॉमर्शियल होल्डिंग्स पर थोपे गए, जिन पर सैन्य जुंता का कब्जा था। बीते साल म्यांमार की अर्थव्यवस्था में 18 फीसदी का संकुचन देखा गया था। इस साल अर्थव्यवस्था में सुधार के कतई कोई संकेत नहीं हैं। लगभग 7 लाख लोगों को सशस्त्र संघर्ष और राजनीतिक हिंसा के चलते अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है। इसकी हालत कितनी संवेदनशील है, इसे विश्व बैंक की वैश्विक अर्थव्यवस्था वाली रिपोर्ट से समझा जा सकता है। इस रिपोर्ट में म्यांमार को शामिल तक नहीं किया है।
लाओस
कोरोना महामारी से पहले लाओस तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था थी। आज उसका कर्ज श्रीलंका के जैसा ही हो गया है। लाओस सरकार ऋणदाताओं से बिलियन डॉलर के कर्ज को चुकाने के लिए बात कर रही है। कमजोर सरकार वाले इस देश के लिए कठिन आर्थिक हालात स्थितियां दुरूह करने का काम कर रहे हैं। विदेशी मुद्रा भंडार से दो महीने का आयात ही हो सकेगा। लाओस की मुद्रा में 30 फीसदी की गिरावट आई है। करेला वह भी नीम चढ़ा की तर्ज पर आसमानी छूती महंगाई और कोरोना की वजह से आई बेरोजगारी ने गरीबों की संख्या बढ़ने की आशंका प्रकट कर दी है।