NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन गई हैं। उनका मुकाबला विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिंहा से था। सियासी नजरिए से देखें तो द्रौपदी मुर्मू की जीत पहले से ही तय मानी जा रही थी। बेहद शांत स्वभाव की मुर्मू लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए भी जानी जाती हैं। बचपन से लेकर राज्यपाल बनने तक के सफर में उन्होंने ऐसे कई फैसले लिए हैं जो बताते हैं कि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के तौर पर एक रबर स्टैम्प साबित नहीं होंगी।
आदिवासी क्षेत्र में जन्म लेने के बाद भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर राजनीति में आने वाली, द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के आदिवासी बाहुल्य जिले मयूरभंज के एक गांव में हुआ है। इस जिले के 7 गांवों में मुर्मू इतिहास की ऐसी पहली लड़की रहीं जो कॉलेज पहुंची। जिस दौर में वो आगे पढ़ने और बढ़ने की बात कर रही थीं उस दौर में लड़कियों के लिए कॉलेज जाना एक सपने जैसा था। लेकिन, उन्होंने अपनी जिद के कारण शुरुआती शिक्षा मयूरभंज जिले के KBHS उपरबेड़ा स्कूल से पूरी की। जिसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए भुवनेश्वर के रामादेवी विमेंस कॉलेज पहुंची। जहां से उन्होंने स्नातक यानि BA की डिग्री ली।
मुर्मू मई 2015 से लेकर जुलाई 2021 तक झारखंड की राज्यपाल रही हैं। नवंबर 2016 का दौर झारखंड के इतिहास में उतार-चढ़ाव भरा रहा। रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दो सदियों पुराने भूमि कानूनों यानि छोटानागपुर काश्तकारी और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियमों में संशोधन पारित किया था। इस संशोधन के तहत जमीन की औद्योगिक उपयोग के लिए अनुमति देना आसान हो जाता है। राज्यभर में आदिवासी समुदाय ने इस संशोधक का पुरजोर विरोध किया और प्रदर्शन किया।
लेकिन, जब इसे राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा गया। तो द्रौपदी ने सरकार से सवाल किया। पूछा कि इस संशोधन से आदिवासियों को कितना फायदा होगा सरकार यह स्पष्ट करे। इस कानून पर विचार करने के बाद उन्होंने यह विधेयक सरकार को वापस कर दिया और मुहर नहीं लगाई।
और भी कुछ मौकों पर द्रौपदी मुर्मू की मुखरता देखने को मिली है। वह अपनी ही पार्टी की सरकार की आलोचना करने से नहीं चूकीं। नवंबर 2018 में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि, “भले ही झारखंड राज्य सरकार और केंद्र सरकार, आदिवासियों को बैंकिंग सेवाओं और अन्य योजनाओं के लाभ देने के लिए काम कर रहे हों, लेकिन एससी और एसटी की स्थिति आज भी इस दिशा में बेहद खराब बनी हुई है।”
द्रौपदी मुर्मू भले ही आदिवासी क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं, लेकिन लीडरशिप और चीजों को तोलमोल कर उन पर विश्वास करने की खूबी उन्हें उनके पिता और दादा से मिली। उनके पिता और दादा दोनों ही ग्राम परिषद के मुखिया रहे हैं। उनकी लीडरशिप की झलक द्रौपदी मुर्मू के काम करने के तरीके में देखने को मिलती है।