हमारे सांसद…. विकास नीधि को खर्च करने में फिसड्डी साबित हो रहे हैं. इस मामले में राज्यसभा सांसदों का हाल ज्यादा बुरा है. सांसद में रखे गए रिपोर्ट ने इस सच को सामने लाया है. रिपोर्ट के अनुसार राज्यसभा सांसद अपने सांसद विकास निधि का उपयोग करने में विफल रहे हैं. आंकड़ें बताते हैं कि ऐसे कई सांसदों के फंड का 75 फीसदी राशि वापस हो जाती है. दैनिक भास्कर के पड़ताल में इस सच्चाई की पुष्टि भी हुई है. भास्कर के इस पड़ताल में इसकी मुख्य वजह राज्यसभा सांसदों के पैराशुटर होना बताया गया है.
नियम कहता है कि राज्यसभा सांसद …..इस राशि का उपयोग उसी राज्य में कर सकते हैं जहां से उनका निर्वाचन हुआ है. मगर हकीकत में कई राज्यसभा सांसद वैसे हैं जो अपने मूल राज्य से निर्वाचित नहीं होते हैं. जुगाड़ लगाकर कई सांसद दूसरे राज्यों से निर्वाचित होते रहे हैं. जाहिर है, ऐसे सांसदों की प्राथमिकता अपना राज्य होता है जहां इस विकास नीधि को खर्च नहीं कर सकते हैं. नतीजा होता है कि विकास का यह पैसा वापस करना पड़ता है.
दिलचस्प यह है कि इस मामले में कोई भी राजनीतिक पार्टी पाक साफ नहीं है. देश की हर राजनीतिक पार्टियां इस जुगाड़ मेथड का इस्तेमाल करती है. ऐसे में भुगतना पड़ता है… उस राज्य की जनता को जहां से वो सांसद निर्वाचित होते हैं.
पड़ताल में सामने आया है कि यूपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब सहित 6 राज्यों के ऐसे 27 सांसदों को आवंटित विकास राशि का 75 फीसदी वापस करना पड़ा है. ऐसे सांसद अपने निधि का केवल 25 फीसद राशि ही इस्तेमाल करने की अनुशंसा कर पाए. इस मामले में उत्तरप्रदेश राज्यसभा के सांसदों का प्रदर्शन सबसे बुरा रहा है. यूपी के ऐसे 11 सांसदों के खाते में 44.46 करोड़ रूपए शेष पड़े रह गए.
संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास निधि यानि एमपीलैड योजना की राशि को कोविड काल में रोक दिया गया था. केन्द्र सरकार ने इस राशि का समायोजन देश के समेकित कोष में कर दिया था. मगर अब एमपीलैड फंड फिर से लागू कर दिया गया है. उम्मीद करते हैं कि केन्द्र सरकार इस मामले को लेकर गंभीरता से विचार करेगी.