उत्तर प्रदेश का राजनीतिक घटनाक्रम लगातार बदल रहा है। सियासत की पिच पर ऐसी हलचल मची हुई है कि अच्छे-अच्छे खिलाड़ी भी बोल्ड हो रहे हैं। कुछ समय पहले तक मजबूत स्थिति में मानी जा रही सत्ताधारी पार्टी के 7 विधायकों और 2 बड़े मंत्रियों ने लगातार इस्तीफा दे दिया है। खास बात यह है कि यह सभी ओबीसी समाज से आते हैं। भाजपा में इस्तीफों का क्रम लगातार जारी है और ओबीसी समाज के बाद अब ब्राह्मण समाज के भी बड़े नेताओं ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया है। 71 वर्ष के लखीमपुर खीरी से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी भी भाजपा छोड़ गए हैं इन सबके बीच एक चेहरा ऐसा सामने आया है जिसकी लगातार चर्चा हो रही है। नाम है दारा सिंह चौहान।
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दारा सिंह चौहान के बारे में कहा जाता है उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौसम वैज्ञानिक हैं। जहां जाते हैं सरकार बनती है। इसके अलावा वह एक अरसे से राजनीति से जुड़े हुए हैं। अगर बात करें दारा सिंह चौहान की तो उनका राजनीतिक कैरियर बसपा से शुरू हुआ था। सबसे पहले बसपा से एमएलसी हुए उसके बाद 1996 में बहुत कम उम्र में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें समाजवादी पार्टी से राज्यसभा भेज दिया। मुलायम ने उन्हें फिर राज्यसभा में रिपीट किया और 2000 में एक बार फिर वह राज्यसभा चले गए। इसके बाद वह बसपा के टिकट पर घोसी की सीट से लोकसभा पहुंचे।
उसके बाद वह चुनाव एक चुनाव हारे भी लेकिन वो लगातार राजनीति के मैदान में डटे रहे। साल 2015 में दारा सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। उस समय कहा गया था कि उनकी अहमियत को देखते हुए खुद अमित शाह ने उन्हें पार्टी में लाने का बंदोबस्त किया था भाजपा में आते ही उन्हें भाजपा ओबीसी मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया गया था। इसके बाद इस बार इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिलता हुआ दिखा भी। उस चुनाव में दारा सिंह चौहान केशव प्रसाद मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे बड़े ओबीसी चेहरों की मौजूदगी के कारण भाजपा के अच्छे खासे ओबीसी विधायक जीत कर आए थे। यही कारण था कि भारतीय जनता पार्टी 300 से ज्यादा का आंकड़ा छूने में सफल रही और एनडीए गठबंधन को अगर मिला दिया जाए तो सीटें 325 को पार कर गईं थीं। लेकिन यह बताना दिलचस्प है कि किस तरह दारा सिंह चौहान हर बार मिजाज को भांप लेते हैं।
उसी तरह से अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाते हैं। 2017 विधानसभा चुनावों से भी ठीक 2 साल पहले उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। ऐसा ही कुछ उन्होंने उन दिनों भी किया था जब 2007 में पहली बार बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उन दिनों बहुजन समाज पार्टी में ही पहुंच गए थे। आपको बताते चलें दारा सिंह चौहान ने मधुबन सीट से पहली बार भगवा लहराने में सफलता को प्राप्त की थी। इससे पहले बीजेपी कभी इस सीट से नहीं जीत पाई थी। इसीलिए लगातार इस बात की चर्चा की जा रही है कि दारा सिंह चौहान के भारतीय जनता पार्टी छोड़ने से बीजेपी को ओबीसी फ्रंट पर काफी नुकसान हो सकता है। क्योंकि इससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी जैसे लोग भी पार्टी छोड़ चुके हैं। दारा सिंह चौहान की अहमियत इस बात समझी जा सकती है कि उनके पार्टी छोड़ने के बाद खुद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए कहा था कि बड़े भाई दारा सिंह चौहान के पार्टी छोड़ने से मैं दुखी हूं और कोई बड़ा अब अगर अपने घर से चला जाता है तो हमें इस पर विचार करना चाहिए। अपने ट्वीट में केशव प्रसाद मौर्य ने दारा सिंह चौहान को अपना बड़ा भाई भी बताया था।
दारा सिंह चौहान कोसी की मधुबन विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं। वहां के जातिगत समीकरण भी कुछ ऐसे हैं कि वहां से इस बार फिर उनकी सम्भावनाएं हो सकती हैं और उनका वहां से लड़ना सपा के लिए भी फायदेमंद हो सकता है आइए आपको बताते हैं क्या है यहां के जातिगत समीकरण।
मधुबन विधानसभा सीट
• 70 हजार दलित वोटर
• 60 हजार यादव वोटर
• 22 हजार मुस्लिम वोटर
• 24 हजार चौहान वोटर
• 25 हजार राजभर वोटर
• 40 हजार में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और बनिया वोटर शामिल
• कुल मतदाता – 3 लाख 93 हजार 299
अब दारा सिंह चौहान जैसे नेता का जाना बीजेपी को कितना नुकसान देगा यह तो वह आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल इतना साफ है कि एक बार फिर दारा सिंह चौहान ने हमेशा की तरह मौसम वैज्ञानिक वाली अपनी छाप छोड़ दी है।