उत्तर प्रदेश में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। इतना ही नहीं सियासी दल चुनावी बिसात पर जमकर बैटिंग भी कर रहे हैं। हर दल ने अपने तीस मार खां समझे जाने वाले स्टार प्रचारकों को चुनावी रणभूमि में उतार दिया है। सभी स्टार प्रचारक भी अपना पूरा दमखम झोंके हुए हैं। लेकिन इस बार तमाम बदलते समीकरणों के चलते चुनाव काफी रोचक हो गया है।
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कई कद्दावर नेता भी अपनी सीट को लेकर असुरक्षा महसूस कर रहे हैं। कई को डर भी लग रहा है कि वह चुनाव संभवतः हार सकते हैं। कई नेताओं ने अपनी सीट भी बदली। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे कद्दावर नेताओं ने अपनी परंपरागत सीट की बजाय फाजिलनगर को चुना। वहीं बात की जाए डिप्टी सीएम की तो केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी की सिराथू से लड़े। उसके बावजूद बीजेपी के दिग्गज़ नेताओं ने उनके लिए चुनाव प्रचार किया।
जबकि बीजेपी को एक समय तक उनका चेहरा सीएम पद के लिए मुफीद लग रहा था। लेकिन इस बीच बीजेपी के एक अहम नेता, पूर्वांचल से आने वाले भूपेश चौबे लगातार चर्चा में बने हुए हैं। सोनभद्र जिले की रावटसगंज विधानसभा से विधायक भूपेश चौबे लगातार अपने अतरंगी चुनाव प्रचार के तरीकों के अलावा कई कारणों से चर्चा में बने हुए हैं।
उनका एक वीडियो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर बहुत तेजी के साथ वायरल हुआ था। जिसे लोग लगातार सोशल मीडिया पर शेयर करते देखे गए। इसमें चौबे जी जनता के सामने मंच पर ही कान पकड़ कर उठक-बैठक करते देखे जा सकते थे। उन्होंने कहा कि 5 साल में कोई गलती हो तो हमको माफ करिएगा। कहा जा रहा है कि भूपेश चौबे ने इस सब अंदाज के जरिए लोगों से इमोशनल अपील की थी । कहा तो ये भी था कि चुनाव हमें ही जिताना है चाहे कुछ हो जाए। भूपेश चौबे इसके बाद तमाम इंटरव्यूज भी देते नजर आए। लेकिन एक बार फिर वह चर्चा में आ गए हैं।
विधायक जी का एक तेल लगाते वीडियो वायरल हो रहा है। जी हां, भूपेश चौबे को साफ-साफ एक बुजुर्ग को तेल लगाते देखा जा सकता है। उन्होंने बाद में कहा कि क्योंकि वह बुजुर्ग थे तो उनकी उन्होंने तेल मालिश के जरिये सेवा की है। इस वीडियो में देखा जा सकता है कि तेल लगाने के दौरान वह बुजुर्ग अपने शरीर में कई जगह अलग-अलग स्थानों पर लगाने की गुजारिश करते देखे जा सकते हैं। हालांकि यह वीडियो इतना क्यों वायरल हो रहा है? इसे जानने के लिए आपको देखना चाहिए यह वीडियो। किस तरह से बीजेपी का एक विधायक खुद एक बुजुर्ग को तेल मालिश करते हुए देखा जा सकता है।
हालांकि माननीय कहे जाने वाले हमारे जनसेवक, जन प्रतिनिधि इस तरह के कारनामे करते दिखाई देते हैं तो यह सवाल मन में जरूर एक बार उठता है, जोकि आप दर्शकों के मन में भी जरूरी उठता ही होगा कि क्या वाकई में जो वादे माननीय करते हैं, जो संवैधानिक शपथ हमारे जनसेवक लेते हैं। क्या 5 साल उन पर खरे उतरते भी हैं? अगर ऐसा है तो फिर इन सस्ते उपायों या जुगाड़ों की जरूरत क्यों पड़ती है? वह भी ऐन चुनाव के मौके पर। शायद यही एक पैटर्न है चुनावी राजनीति क, जो देश की आजादी के बाद से अब तक बदल नहीं सका। शायद यही सब देखते हुए अमर जनकवि अदम गोंडवी ने भी कहा था कि –
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,
मगर यह दावे झूठे हैं, ये वादा किताबी है।