बीजेपी ने आज यूपी चुनावों के लिए प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी। इनमें सबसे बड़ी घोषणा हुई है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और दोनों उप मुख्यमंत्रियों को लेकर। जी हां, योगी आदित्यनाथ और दोनों मुख्यमंत्री इस बार इलेक्शन लड़ेंगे। हैरानी की बात यह है कि योगी आदित्यनाथ अब तक विधान परिषद के सदस्य थे। इससे पहले लगातार यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव लड़ेंगे। कहां जा रहा था इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा। जब से अयोध्या में राम मंदिर का फैसला आया है, यह मुद्दा ठंडा पड़ने लगा है। इस बात की जोर-शोर से जुगाड़ थी कि योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से लड़ाकर बीजेपी इस मुद्दे को दोबारा जिंदा कर पाएगी और एक बार फिर हिंदुत्व के मुद्दे को धार देगी। पर, योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर शहर सीट से चुनाव लड़ने के फैसले ने सब कुछ पलट कर रख दिया है।
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इससे पहले अयोध्या से लड़ने के लिए यह भी कह दिया गया था कि बीजेपी की सेंट्रल इलेक्शन कमेटी ने उनके नाम पर मुहर लगा दी है। इतना ही नहीं अयोध्या में साधु-संतों, बीजेपी और आरएसएस के लोगों ने उनके लिए बाकायदा जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया था। लोग इसको लेकर काफी उत्साहित थे लेकिन आयोध्या के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें वहां से नहीं लड़ाया गया। आपको बता दें कि अयोध्या सीट पर 70 हजार ब्राह्मण हैं, 28 हजार ठाकुर बाकि दलित, मुस्लिम और अन्य बिरादरी हैं। यहां पर यह याद दिलाना जरूरी है कि किस तरह से योगी आदित्यनाथ की 5 साल की सरकार में लगातार ये नैरेटिव बना था कि ब्राह्मणों के खिलाफ अत्याचार हुए हैं। फिर चाहे उन्नाव का मामला हो चाहे फिर कानपुर का मामला। फिर उसके बाद खुशी दुबे वाला मामला। खुशी दुबे अभी तक जेल में है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। क्योंकि जिस सीट से योगी चुनाव लड़ने जा रहे हैं उस गोरखपुर शहर सीट से राधा मोहन दास अग्रवाल 20 सालों से विधायक हैं।
योगी का टिकट फाइनल होने के बाद एक वीडियो तेजी के साथ वायरल हो रहा है। जो उन्होंने एक यूट्यूब चैनल को दिया था। उसमें जब पत्रकार पूछता है कि कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ आपकीं सीट से चुनाव लड़ेंगे तो वह पत्रकार को ही भला-बुरा कहने लगते हैं। एक बात यह भी है कि अब राधा मोहन दास अग्रवाल इस बात को लेकर कैसे सहज रहेंगे और किस तरह से इस पर रिएक्ट करेंगे, यह देखना भी काफी दिलचस्प होने वाला है। क्योंकि कहा जाता है लगातार 20 सालों से विधायक होने के बावजूद बीजेपी संगठन या फिर सरकार में उन्होंने उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया। इस कारण से भी उनकी नाराजगी निकलकर सामने आ सकती है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ के लिए सुनील सिंह को भी एक खतरा माना जा रहा है।
सुनील सिंह, योगी आदित्यनाथ के काफी करीबी और विश्वासपात्र रहे हैं कहते हैं कि सांसद बनने के बाद योगी ने हिंदू युवा वाहिनी का सारा कामकाज उन्हीं को सौंप दिया था। लेकिन 2017 के चुनावों में सुनील सिंह हिंदू युवा वाहिनी के लोगों को बीजेपी की ओर से टिकट दिए जाने की वकालत कर रहे थे। यह संख्या करीबन 35 से 36 तक थी। लेकिन बीजेपी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस पर सुनील सिंह बागी हो गए और उन्होंने यूपी में अलग-अलग सीटों से इन लोगों को चुनाव लड़ाया। इनमें से एक भी प्रत्याशी जीत नहीं पाया। कहा जाता है उन दिनों खुद योगी आदित्यनाथ भी उन्हें इस बात के लिए कहते रह गए, लेकिन उन्होंने योगी की भी नहीं सुनी।
बाद में उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी भी छोड़ दी और हिंदू युवा वाहिनी भारत नाम का एक नया संगठन बनाया। आगे चलकर सुनील सिंह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। अखिलेश यादव की शान में कसीदे पढ़ते हुए उन्होंने कहा था कि वह अखिलेश की विकास पुरुष वाली छवि से प्रभावित होकर सपा में आए हैं। इसके बाद एक मामले को लेकर गोरखपुर के एक थाने में सुनील सिंह के ऊपर सरकारी काम में बाधा डालने और बलवा करने आदि धाराओं में एफआईआर भी लिखी गई थी।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि योगी आदित्यनाथ इन विपरीत परिस्थितियों में इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से लगातार सांसद रहे हैं। महज 26 साल की उम्र में वह यहां से पहली बार सांसद चुने गए थे। लेकिन अब पहली बार अपने राजनीतिक कैरियर में गोरखपुर से विधायकी का चुनाव लड़ने जा रहे हैं कहा जा रहा है स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल होने के बाद जिस तरह से लग रहा था कि पडरौना, कुशीनगर और आसपास की सीटों पर उनका प्रभाव पड़ सकता है इसलिए भी योगी को यहां से लड़ाने का मास्टर स्ट्रोक बीजेपी की ओर से चला गया है। योगी के इन चुनावों में गोरखपुर से लड़ने को लेकर आप क्या कुछ सोचते हैं, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। इस रिपोर्ट में फ़िलहाल इतना ही आप देखते रहिए इवोक टीवी।