उत्तर प्रदेश चुनाव की गहमागहमी के बीच एक बड़ी खबर आ रही है। ये खबर बुंदेलखंड से आई है। जिस पर सपा और भाजपा दोनों की उम्मीदें टिकी हुईं हैं। बुंदेलखंड का इलाका, लंबे समय तक डाकुओं से प्रभावित रहा और यहां सपा-भाजपा दोनों में से कोई भी पार्टी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है। खबर यह है कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और दस्यु सम्राट ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। वीर सिंह पटेल को कुछ ही समय पहले समाजवादी पार्टी ने चित्रकूट जिले की मानिकपुर सीट से उतारा था। लेकिन शुक्रवार को वीर सिंह पटेल ने लखनऊ में सपा कार्यालय पहुंचकर चुनाव लड़ने से साफ साफ मना कर दिया। वीर सिंह का कहना है पार्टी जिस शख्स को प्रत्याशी बनाएगी वह पूरी जी जान से उसे जिताने के लिए काम करेंगे। लेकिन वह फिलहाल मानिकपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाहते। वीर सिंह पटेल का कहना है मानिकपुर में संगठन भी कमजोर है और उनकी तैयारी चित्रकूट को लेकर थी ना कि मानिकपुर विधानसभा सीट को लेकर।
वीर सिंह पटेल मशहूर डकैत ददुआ के बेटे हैं। यूं तो ददुआ को मरे हुए 14 साल का वक्त गुजर गया है लेकिन चित्रकूट और बांदा इलाके की बात की जाए तो आज भी इन इलाकों समेत पूरे बुंदेलखंड में ददुआ के नाम का सिक्का चलता है। ददुआ के जीवित रहते हुए भी उसकी छवि एक रॉबिनहुड की ही रही। कहा जाता था उसने कभी गरीबों और वंचित तबके के लोगों को परेशान नहीं किया बल्कि मजबूत आर्थिक और सामाजिक बैकग्राउंड से आने वाले लोगों से ही वसूली करने और उन्हें किडनैप करने का काम करता रहा। लेकिन साफ-साफ देखा जा सकता है कि परिस्थितियों को देखते हुए समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट और ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल पटेल ने इस बार इलेक्शन लड़ने से साफ मना कर दिया है। आपको बताते चलें वीर सिंह पटेल 2012 में चुनाव जीतकर विधायक बने थे। लेकिन 2017 के चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। पांचवें चरण में 29 फरवरी को यहां पर वोट डाले जाने हैं। बताना जरूरी है कि वीर सिंह पटेल की पत्नी ममता पटेल जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। अगर बात करें 2017 के इलेक्शन की तो इसमें पटेल बीजेपी के चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय के हार गए थे।
देश की आजादी के कुछ सालों के बाद चित्रकूट के देवकली गांव में 1949 में जन्मे ददुआ ने 1975 में पहला क़त्ल किया। इसके बाद उसके कदमों ने अपराध जगत में रुकने का नाम नहीं लिया। 2007 में ददुआ का एनकाउंटर होने तक ददुआ के ऊपर लूट, डकैती, हत्या, अपहरण जैसे करीब ढाई सौ से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। कहते हैं कि ददुआ अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए इस लाइन में आया था। कहते हैं कि ददुआ के पिता को कुछ दबंग लोगों ने गांव में नंगा करके घुमाया था और फिर मार दिया था। कहते हैं कि इसी घटना ने शिवकुमार पटेल को उम्र भर भर के लिए ददुआ का नया जन्म दिया।
अपराध जगत में ददुआ ने बाकायदे अपना एक गैंग तैयार कर लिया था। साल 1986 में ददुआ ने रामू का पुरवा नामक गांव में मुखबिरी के शक में 9 लोगों को मार दिया था। फिर आया साल 1992। इस साल उसने मड़ैयन गांव में 3 लोगों को मारने के बाद गांव को राख कर डाला था। पुलिस से बचने को ददुआ ने राजनीति की आड़ लेनी शुरू कर दी थी। कुर्मी, पटेल और आदिवासी कार्ड की बदौलत सफलतापुर्वक अपनी पैठ बना ली। चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, फतेहपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, मिर्जापुर, कौशांबी की लगभग दसियों लोकसभा सीटों और अनगिनत विधानसभा सीटों पर ददुआ का दबदबा था।
बांदा के नेता रामसजीवन सिंह सांसद और विधायक रहे। कहते हैं कि वह ददुआ को बेटे जैसा स्नेह देते रहे। ददुआ ने भी उन्हें अपना गुरु माना। अपने राजनीतिक गुरु के कहने पर ददुआ ने मायावती के पक्ष में माहौल तैयार किया। सैकड़ों गांवों में उसकी तूती बोलती थी। वह बसपा नेताओं के करीब आता गया। लेकिन बाद में बसपा नेता दद्दू प्रसाद से अनबन हो गई और उन्होंने मायावती से शिकायत कर दी। राजनीतिक हैसियत बरकरार रखने की ख़ातिर ददुआ ने भी पाला बदला और 2004 में मुलायम को सपोर्ट कर दिया। उसे शिवपाल का करीबी माना जाता था।
ददुआ खुद तो खादी नहीं पहन पाए। लेकिन परिवार को राजनीतिक जरूर जमा दिया। भाई बालकुमार पटेल 2009 में मिर्जापुर से सांसद बने। बेटा वीर सिंह पटेल 2012 में चित्रकूट के कर्वी से विधायक हुआ और बहू ममता पटेल भी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। वहीं भतीजा राम सिंह पटेल भी पट्टी से विधायक चुना गया। तारीख़ थी 22 जुलाई 2007। इसी दिन किसी की नज़र में रॉबिनहुड और पुलिसिया भाषा में अपराधी ददुआ पुलिस- एसटीएफ की गोली से मारे गए। जो भी हो, इतने बरस बाद भी चित्रकूट और बुंदेलखंड के गली-नुक्कड़ ददुआ के किस्सों से गुलज़ार हैं।