मौसम में बढ़ती सर्दी के बीच य़ूपी में राजनीति में गर्मी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कई सीटें ऐसी हैं जिन पर कुछ नामों की दावेदारी हमेशा से सशक्त रही है। ऐसा ही एक नाम है राजा भैया का। राजा भैया को कौन नहीं जानता! लगातार 6 बार से एक ही सीट से लगातार निर्दलीय चुनाव जीतना कोई मजाक बात तो नहीं।
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सहमति-असहमति. समर्थन-विरोध के बीच लगातार 30 सालों से एक ही सीट से विधायक चुने जा रहे शख्स को आप यूं ही नजरअंदाज नहीं कर सकते। एक बार फिर राजा भैया चुनाव को लेकर चर्चा में आ गए हैं। वजह है अखिलेश का उन्हें लेकर दिया गया एक बयान। असल में राजा भैया ने हाल ही में मुलायम सिंह यादव से उनके जन्मदिन पर मुलाकात की थी। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि राजा भैया समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर सकते हैं। लेकिन एक निजी कार्यक्रम में प्रतापगढ़ में शादी में शामिल होने आए अखिलेश यादव से जब राजा भैया को लेकर सवाल किए गए तो वो बिफर पड़े।
जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कौन हैं ये, ये हैं कौन, किसकी बात कर रहे हो आप। इसके बाद उन्होंने बात को पलटते हुए कहा कि मुझे पता है पत्रकार साथियों, आप भी सरकार को बदलना चाहते हो। इतना कहते हुए अखिलेश मौके से निकल लिए। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ला राजा भैया से लंबे समय से नाराज चल रहे हैं। असल में इसके पीछे है 2019 का सपा-बसपा का गठबंधन। इस दौरान बसपा के राज्यसभा उम्मीदवार को समर्थन देने की बात राजा भैया से अखिलेश यादव ने की थी। लेकिन राजा भैया ने इसके खिलाफ कदम उठा लिया था। राजा भैया ने बसपा उम्मीदवार के खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन दे दिया था। ऐसे में ये जानना भी जरूरी है कि राजा भैया ने आखिर ऐसा कदम क्यों उठाया।
ये बात है साल 2003 की। मायावती उत्तर प्रदेश के मुखिया हुआ करती थी। तब मायावती ने राजा भैया पर पोटा लगाकर उन्हें जेल भिजवा दिया था। उनके कुंडा स्थित घर पर छापे भी डलवाये गए थे। उनके पिता उदय प्रताप सिंह, चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह को भी जेल में डलवाया गया था। इसके बाद जब मुलायम सिंह यादव की सरकार आई तो मुलायम सिंह ने राजा भैया पर लगे सभी केस वापस ले लिए थे और उन्हें सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया था। यही कारण है कि राजा भैया मायावती से उसी समय से अदावत मानते रहे। हालांकि जब भी उनसे सवाल किया जाता है वो कुछ भी कहने से बचते रहे। लेकिन उसके बावजूद मायावती को लेकर उनकी भावनाएं जग ज़ाहिर हैं।
यही कारण है कि उन्हींने राज्यसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार को वोट देने से साफ इनकार कर दिया था। चूंकि बसपा और सपा का उस समय गठबंधन था, इसलिए अखिलेश यादव को ये बात नागवार गुजरी। उन्हें लगा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और एक प्रमुख दल के मुखिया को कोई नेता ऐसे-कैसे मना कर सकता है। तभी से अखिलेश यादव के मन में ये बात बैठ गई थी। लेकिन वहीं जब मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के मौके पर उन्होंने मुलाकात की तो इसके राजनीतिक मतलब निकाले जाने लगे थे।
हांलाकि राजा भैया ने खुद कहा था वो हर साल मुलायम सिंह यादव को उनके जन्मदिन पर बधाई देने आते हैं और इस बार कल खास जन्मदिन के मौके पर वो बाहर थे इसलिए वअगले दिन उन्हें बधाई देने आए। लेकिन उत्तर प्रदेश में जो चुनावी मौसम है उसके चलते मीडिया में तरह तरह के कयास लगाए जाने लगे कि अखिलेश यादव की पार्टी के साथ राजा भैया जल्दी गठबंधन कर सकते हैं। लेकिन अखिलेश ने अब जिस तरह का बयान राजा भैया को लेकर दिया है उससे साफ हो गया है कि कम से कम फिलहाल इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही