कुंडा किंग के नाम से मशहूर, प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से लगातार 6 बार से विधायक चुने जा रहे राजा भइया एक बार फिर मैदान में हैं। वह कुंडा से ही UP Election 2022 के लिए जोर आजमाइश करेंगे। उन्होंने शुरुआती चरण के लिए 11 कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी कर दी हैI इस। इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि उनका बीजेपी के साथ गठबंधन भी हो सकता है। लेकिन लंबे समय से बाहुबली के तौर पर पहचान रखने वाले राजा भैया के बारे में अटकलें लग रहीं हैं कि वह बीजेपी के साथ गठबंधन भी कर सकते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतने सालों तक लगातार जीतने के बाद भी उन्हें कोई चुनौती नहीं दे पाया। लेकिन दो ऐसी ओरतें जरूर हैं जिन्होंने इतने सालों में राजा भइया को छकाने का काम किया है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर कौन हैं वो दो वीरांगनाएं जिनसे कुंडा के राजा भी पार न पा सके होंगे। तो चलिए शुरू से शुरू करते हैं।
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कुंडा विधानसभा प्रतापगढ़ जिले में पड़ती है। अगर प्रतापगढ़ की बात की जाए तो कहते हैं कि यहां दो ही लोगों का सिक्का चलता है। या तो कुंडा के राजा राजा भैया या फिर कालाकांकर की रानी रत्ना सिंह। दोनों लोगों में लंबे समय से पुरानी अदावत रही है। दोनों एक दूसरे को सियासी चुनौती पेश करते रहे हैं। दोनों ही क्षत्रिय समाज से आते हैं और दोनों का ही अपने इलाकों में अच्छा खासा दबदबा और रुतबा रहा है। लेकिन फिर आकर सवाल उठता है कौन किस पर भारी पड़ा और पड़ा तो पड़ा कैसे?
कहते हैं रत्ना सिंह प्रतापगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ती हैं। इस सीट से एक बार राजा भैया के चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह ने निर्दलीय चुनाव जीत कर सबको चौंका दिया था। अक्षय प्रताप सिंह ने निर्दलीय चुनाव राजा भैया के समर्थन से लड़ा था और लंबे समय से जीतती चली आ रही रत्ना सिंह के विजयी रथ पर लगाम लगा दी थी। हालांकि बाद में रत्ना सिंह ने हार का बदला लिया और अपनी हार को जीत में बदल दिया था। कहते हैं दोनों राज परिवारों में पुरानी अदावत को लंबा अरसा हो गया जहां रत्ना सिंह कालाकांकर की राजकुमारी हैं वहीं राजा भैया भदरी रियासत के राजकुमार हैं।
दोनों में यह राजनीतिक लड़ाई एक लंबे समय से जारी है। इसमें रघुराज प्रताप सिंह को समाजवादी पार्टी का समर्थन भी मिला था। बाद में उन्होंने जनसत्ता दल के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। 2019 के चुनावों में उन्होंने 2 सीटों पर अपने प्रत्याशी भी खड़े किए लेकिन दोनों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पिछले दिनों राजा भैया के अखिलेश यादव से संबंध भी खराब होते गए।
वजह साफ थी। राज्यसभा सीट पर सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार को राजा भैया ने वोट ना देकर भाजपा के उम्मीदवार को वोट दे दिया था। इसी कारण चुनावों में इस बार स्थिति दिलचस्प हो गई है। कभी सपा अपना उम्मीदवार राजा भैया के खिलाफ नहीं खड़ा करती थी। लेकिन इस बार स्थिति उलट है। किसी जमाने में राजा भैया के सबसे करीबी रहे गुलशन यादव समाजवादी पार्टी के सिंबल पर उनके खिलाफ ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। वहीं अगर बात करें दूसरी महिला कड़ी यानि सिंधुजा मिश्रा की तो सिन्धुजा मिश्रा भाजपा के टिकट पर जोर आजमाइश करती नजर आएंगी। सिन्धुजा मिश्रा का राजनीतिक इतिहास भी जी ठीक-ठाक है। वह 2008-9 के समय में जिला सहकारी बैंक की अध्यक्ष रह चुकी हैं। ब्राह्मण उम्मीदवार उतारकर राजा भैया को बीजेपी ने जोरदार टक्कर देने की कोशिश की है। यहां 75 हजार यादव, 50 हजार ब्राह्मण और 55 हजार मुस्लिम मतदाता हैं।
इससे पहले माना जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ से अपने करीबी संबंधों के चलते बीजेपी राजा भैया के लिए कुंडा सीट खाली छोड़ सकती है। इससे एक बार फिर साफ हो गया है कि राजा भैया को राजकुमारी रत्ना सिंह के बाद फिर एक बार एक महिला चुनौती पेश करती नजर आएंगी।