पेगासस स्पाइवेयर पिछले कई दिनों से चर्चा में है। फ्रांस की संस्था फोरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक लिस्ट जारी की थी जिसमें उन्होंने दावा किया था कि दुनिया भर की सरकारें अपने पत्रकारों,कानून वादियों, नेताओं और यहां तक की उनके रिश्तेदारों के भी फोनस की जासूसी कर रहा है।इस लिस्ट के निकलने के बाद दुनिया भर में इसकी चर्चा शुरू हो गई थी।इस लिस्ट में 50,000 से भी ज्यादा लोगों के नाम सामने आए हैं जिसमें काफी वरिष्ठ पत्रकार भी शामिल है।
पेगासस रिपोर्ट के मुताबिक इस लिस्ट में 300 भारतीयों के नाम शामिल है जिसमें कुछ बड़े समूहों के एडिटर के नाम सामने आए हैं। आपको बता दें कि इस पूरे मामले के बाद लोगों के मन में सरकार को लेकर काफी सारे सवाल खड़े हो गए हैं। फोन टैपिंग के इस ताजा मामले ने उन सारे मामलों की याद दिला दी है जिनके कारण कभी भारतीय राजनीति में भूचाल आया था। चलिए आपको इसी तरह के और मामलों से रूबरू कराते हैं।
2019 में इजरायली कंपनी एनएसओ पेगासस स्पाइवेयर पहली बार सुर्खियों में सामने आई थी। उस वक्त यह आरोप व्हाट्सएप ने इसराइली कंपनी पर लगाए थे कि इस स्पाइवेयर के जरिए कंपनी ने 1400 व्हाट्सएप यूजर्स के फोन से उनकी जानकारी हैक कर ली थी। तब भी कई भारतीयों के नाम सामने आए थे। कुछ रिपोर्ट ने बताया था कि पेगासस ने भारत के तकरीबन दो दर्जन वकीलों, एक्टिविस्ट और पत्रकारों के अकाउंट को हैक कर उनकी निजी जानकारी निकाल लिए थी।
आज तक ने एक रिपोर्ट जारी किया था जिसमें उन्होंने बताया था कि भारत में फोन टैपिंग की शुरुआत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने से होती आ रही है। उस वक्त संचार मंत्री रफी अहमद किदवई ने यह आरोप खुद लगाए थे। उन्होंने यह आरोप तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल पर लगाए थे। आपको बता दें कि 1959 मैं सेना के प्रमुख जनरल केएस थिमाया ने भी अपने और अपनी आर्मी ऑफिसर के फोन टैप होने का आरोप लगाया था।
फिर एक और मामला सामने आया था जब 1988 मैं कर्नाटका के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े के कार्यालय में फोन टैप होने की बात हुई थी। उस वक्त विपक्ष के नेताओं ने यह आरोप लगाया था कि हेगड़े सरकार ने उनके फोन टैप कराने के आदेश देकर उनकी निजता में सेंध लगाई है।
आज तक की एक और ऐसी रिपोर्ट के मुताबिक 2004 से 2006 के बीच सरकार की एजेंसियों ने तकरीबन 40 हजार से ज्यादा फोन को टैप किया था।
नीरा राडिया मामला तो शायद आपको याद ही होगा। देश के बड़े उद्योगपति रतन टाटा और मुकेश अंबानी की कंपनियों में पीआर का काम कर चुकी नीरा राडिया का जब फोन टैप मामला सामने आया था तब देश में एक राजनीतिक भूचाल सा ही आ गया था। नीरा राडिया की बहुत से उद्योगपतियों राजनीतिज्ञों अधिकारियों और पत्रकारों से फोन पर हुई बातचीत कई सारे मीडिया चैनल्स में प्रसारित हुई थी। इन सारी बातचीत के बाद नीरा राडिया कि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल होने पर कई सारे सवाल भी खड़े हो गए थे।
2010 में आउटलुक पत्रिका ने यह दावा किया था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने देश के कुछ अहम नेताओं के फोन टैप कराए थे। इसमें तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम सामने आया था। इस मामले को लेकर एक संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग की गई थी जिसे यूपीए सरकार ने खारिज कर दिया था।
अब कुछ ही दिनों पहले पेगासस स्पाइवेयर से जासूसी करने का एक और मामला सामने आया है जिसमें कुछ वरिष्ठ लोगों के नाम शामिल है। पेगासस रिपोर्ट्स के मुताबिक NSO बहुत सारे देशों के साथ काम करता है और उनमें से भारत भी एक है। आपको बता दें कि पेगासस स्पाइवेयर किसी भी iOS या एंड्रॉयड फोन से डाटा निकाल सकता है और विक्टिम को इस बारे में कोई खबर नहीं होती है।
भारत से इस समय कुछ नाम सामने आए हैं जिसमें डॉ गगनदीप कांग का नाम सामने आया है और उनके साथ साथ रोहिणी सिंह, स्वाति चतुर्वेदी, विजेता सिंह और स्मिता शर्मा जैसे महिला पत्रकारों का नाम भी शामिल है।
साथ ही बीजेपी के विपक्षी दल कांग्रेस के लीडर राहुल गांधी का भी नाम इस लिस्ट में आ रहा है। सोमवार को पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट प्रशांत किशोर और मोदी सरकार के नए आईटी नेता अश्विनी वैष्णव का भी नाम सामने आया है।
इन खबरों को सरकार हर तरह से खारिज कर रही है। पार्लियामेंट के मॉनसून सत्र में सारे नेताओं ने इस मामले को लेकर आक्रोश जताया है। मॉनसून सत्र के शुरू होते ही आईटी नेता अश्विनी वैष्णव ने साफ इंकार करते हुए कहा कि यह एक सोची समझी साजिश है और मॉनसून सत्र के 1 दिन पहले ही इस लिस्ट का निकलना कोई इत्तेफाक नहीं है। उनकी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि किसी भी एमनेस्टी जैसी एजेंसियों का भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह पहले से ही भारत के खिलाफ अपना अजेंडा बनाकर चल रहे हैं। एनएसओ ने भी इन सारे मामलों को खारिज कर दिया है और कहा है कि वह जासूसी मैं किसी भी तरह की दखलंदाजी नहीं करते हैं।
इस तरह के जासूसी मामलों की वजह से देश की जनता की निजता और ऑनलाइन सुरक्षा खतरे में आ जाती है। पहले के भी कई सरकारों ने नेशनल सिक्योरिटी और आतंकवादी समूहों पर नजर रखने के लिए इस तरह के रास्ते चुने थे लेकिन इस बात का ध्यान आखिर कौन रखेगा कि इससे लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या वाद स्वतंत्रता छिन जाती है।