लगातार बढ़ते प्रदूषण और गिरते जलस्तर के कारण जल की कमी सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। कई बड़े शहरों में जलस्तर घटने के बाद अब छोटे शहर भी समस्या से लगातार जूझ रहे हैं। सरकारें भी इसके लिए लगातार कोशिश कर रहीं हैं। लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। लेकिन इन्हीं समस्याओं के बीच वैज्ञानिकों ने एक बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। इन कमियों के बीच इस कामयाबी को अगर विज्ञान की सफलता कहा जाए तो शायद सही होगा प्रयागराज में गंगा और यमुना की बीच अदृश्य नदी मिली है। कहा जा रहा है लेकिन यह नदी सरस्वती है या कोई और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नदी के पाए जाने के बाद जल का विशाल भंडार मिलने की बात कही जा रही है। इससे लगातार गिरते जलस्तर के बीच एक रात की खबर आ रही है। आइये आपको बताते हैं क्या है इसका राज? कैसे वैज्ञानिकों ने खोज निकाली हजारों साल पुरानी ये नदी।
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लगातार 3 साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद सीएसआईआर-एनजीआरआई के साइंटिस्टो ने यह विलक्षण कारनामा कर दिखाया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वैज्ञानिकों के अनुसार यह नदी हिमालय से संबंध रखती है। इसी कारण इसके सरस्वती होने का दावा किया जा रहा है। लेकिन जो भी हो गंगा और यमुना के पास धर्म संगम के नीचे तीसरी नदी होने के सबूत काफी चौंकाने वाले हैं। जबरदस्त बात तो यह भी है कि यह रिपोर्ट इंटरनेशनल मैगज़ीन एडवांस अर्थ एंड स्पेस साइंस में बी पब्लिश हो चुकी है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे, लेकिन ये नदी 45 किलोमीटर लंबी, 4 किलोमीटर चौड़ी और 15 किलोमीटर दूर गहरी है।
सबसे अहम बात यह है कि पूरी तरह से भरने के बाद यह नदी करीब 2000 वर्ग किलोमीटर के इलाके को पानी उपलब्ध करवाती है। इससे सिंचाई के लिए काफी आराम हो जाती है। इतना ही नहीं इस नदी के रहने से वाटर लेवल नीचे जाने का खतरा नहीं रहता। ये ऐसा सोर्स है जो वाटर लेवल को बढ़ाने में काफी योगदान दे सकती है। लेकिन सबसे दिलचस्प तो बात यह है कि वैज्ञानिकों ने नदी का पता लगाने के लिए यह रिसर्च शुरू नहीं की थी। असल में उन्होंने गंगा नदी के गिरते वाटर लेवल को जानने के लिए यह रिसर्च शुरू की थी। गंगा नदी समय दुनिया की कई प्रमुख नदियों का जल स्तर लगातार नीचे जाता रहा है
वैज्ञानिकों का कहना है कि असल में गंगा जैसी बड़ी नदियों में एक एक्वीफर सिस्टम होता है। इस सिस्टम के कारण ही गंगा जैसी बड़ी नदियां अच्छे खासे इलाके को पानी की सप्लाई करती हैं। उत्तर भारत में यही काम गंगा नदी करती है। लेकिन पिछले कुछ समय से लगातार गंगा नदी पर यह दबाव बढ़ता चला जा रहा था। यह दबाव ऊपरी सतह पर नहीं दिखाई देता लेकिन यह लगातार बढ़ता रहता है। यह रिसर्च बहुत ही एडवांस्ड तरीके से की गई थी। इसके लिए बाकायदा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे किया गया था। जिसके बाद पूरे इलाके का नक्शा बनाया गया और फिर यह रिसर्च पेश की गई। पूरी रिसर्च को लेकर मैगजीन में पेश किया गया उसमें यह भी बताया गया है कि यह नदी 12 महीने पानी से भरी रहती है और गंगा और यमुना को पानी की सप्लाई भी करती है।
हैरान होने वाली बात तो यह है कि यह नदी उसी स्थान पर बह रही है जहां पर सरस्वती के होने की बात कही गई थी। आपको याद दिला दें सरस्वती को अब तक एक अदृश्य धारा कहा जाता रहा है। जिस गहराई पर नदी की खोज की गई थी उससे ऐसा लगता है कि नदी कम से कम 10,000 से 12,000 साल पुरानी होगी। असल मे ये खोज हैरतअंगेज तरीके से सामने आई है। क्योंकि हमारे साइंटिस्ट पानी की खोज करने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे कर रहे थे। जिससे जमीन के नीचे मौजूद पानी का पता किया जा सके और उसका उपयोग पीने के पानी, खेती और दुसरे कामों को पूरा करने के लिए हो सके। इसके लिए सीएसआईआर-एनजीआरआई के साइंटिस्टों ने हेलिकॉप्टर पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तकनीक को फिट किया और उसकी मदद से गंगा-यमुना के इलाके की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मैपिंग की और अब नतीजा सबके सामने है।