“खुद की खोज में निकल
तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की
समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है”
दुनिया में हर खिलाड़ी कभी न कभी सँघर्ष के दौर से जरूर गुज़रता है। किसी न किसी तरह की उथल-पुथल का सामना करता है। लेकिन भारत में, उनमें से कई को अपने ओलंपिक सपनों को पूरा करने के लिए पैसों की क़िल्लत और समाज के ढकोसलों से भी लड़ना पड़ता है। देश के हर एथलीट की ऐसी ही सक्सेस स्टोरी है। 2012 के लंदन ओलंपिक कांस्य पदक विजेता मैरी कॉम को ही ले लें । जो मिट्टी के घर में पली-बढ़ी और वर्ल्ड चैंपियन बनने के लिए खाना तक छोड़ दिया। ये स्टोरीज इतनी अहम हैं कि बॉलीवुड भी इन पर बिना फ़िल्म बनाए न रह सका। बॉलीवुड की बायोपिक्स जैसे दंगल, भाग मिल्खा भाग और मैरी कॉम ने भारतीय एथलीटों की असल ज़िंदगी की लड़ाई को उघाड़कर रख दिया है। फर्श से लेकर अर्श तक पहुंचने की कहानियां भारत के लिए नई नहीं हैं। लेकिन इससे इन कहानियों की की अहमियत जरा भी कम नहीं हो जाती।
हम आपके लिए लेकर आए हैं उस भारतीय शेरनी की कहानी, जिन्होंने देश की मिट्टी से निकलकर दुनिया भर में हिंदुस्तान का झंडा बुलंद किया है। तो आइए बताते हैं इंडियन शेरनी भावना जाट के बारे में-
राजस्थान के राजसमंद जिले के काबरा के छोटे से गाँव की रहने वाली 24 वर्षीय, टोक्यो 2020 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली भारत की पहली महिला रेस वॉकर बनीं। भावना ने साल 2019 मे सबको अचानक चौंका दिया था।भावना ने नेशनल ओपन रेस-वॉकिंग चैंपियनशिप में 1: 29.54 के समय के साथ नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा था। गौर करने वाली बात है कि ओलंपिक रिकॉर्ड भी इससे ज़्यादा यानि 1: 31.00 का है। उनकी इसी तरह की परफॉर्मेंस के कारण उन्होंने रियो ओलंपिक में क्वालीफाई किया था और सातवें स्थान पर रहीं थीं।
भावना की ये कामयाबी इसलिए भी अहम थी क्योंकि उन्हें कभी भी किसी सीनियर नेशनल कैम्प या इंटरनेशनल कैम्प के लिए नहीं चुना गया था। इसीलिए उनकी कामयाबी पर हर कोई हैरान था। बहुत पुरानी बात नहीं है जब भावना और उन्और उनके परिवार को एक दिन में दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था।

भावना कहती हैं “मेरे पिता के पास हमारे गांव में केवल दो बीघे जमीन थी। एक समय था जब हम एक दिन में सिर्फ एक टाइम खाना खाते थे क्योंकि हमारे खेत में कम अनाज पैदा होता था। हम सभी मिट्टी की झोपड़ी में रहते थे और रात में मेरे घर के पास एक छोटे से खेत में ट्रेंनिंग करती थी ताकि गाँव के बड़े- बुजुर्गों को पता न चले। मैं उन दिनों नंगे पांव ट्रेनिग करती थी। लड़की होने के कारण शॉर्ट्स पहनकर ट्रेनिंग करना वो नहीं पसन्द करते थे। इसके अलावा ट्रेनिंग के दौरान एक रेस वॉकर द्वारा किये जाने वाले एक्शंस उन्हें काफी शर्मनाक लगती थीं। इसलिए उन्होंने मुझे ट्रेनिंगा बंद करने के लिए कहा और मुझे घर के कामों पर ध्यान देने के लिए कहा। लेकिन मेरे पिता और भाई को मेरी प्रतिभा पर बहुत भरोसा था और यह पक्का किया कि जब गांव के लोग आसपास न हों तो मुझे ट्रेनिग करने के लिए कुछ समय मिल सके, और इसके लिए रात से बेहतर टाइम नहीं हो सकता था। भावना की स्टोरी आप हमारे इस स्पेशल वीडियो में भी देख सकते हैं
भावना रोजाना सुबह तड़के 3 बजे उठती थीं औ अपने भाई की कड़ी निगरानी में गांव वालों के जगने से पहले तक प्रैक्टिस करती थीं। इतना ही नहीं जब भावना जूनियर लेवल पर खेल रहीं थीं तब उनके पिता दिनों के दौरान, उसके पिता शंकरलाल महज 2000 रुपए कमाते थे। लेकिन जुनून की इंतहा देखिए भावना को कम्पटीशनों में भाग लेने के लिए अपने साथी खिलाड़ियों से जूते उधार लेने पड़ते थे। भावना जाट अभी भी रेलवे के लिए बिना सैलरी के काम करती हैं ताकि वो अपना सारा टाइम ट्रेनिंग के लिए दे सकें। भावना के स्ट्रगल को सेलिब्रेट करते हुए उनके एम्प्लॉयर रेलवे ने भी उनको शुभकामनाएं दीं हैं
#TokyoOlympics
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) July 13, 2021
10 Days to Go.
Ms. Bhawna Jat is second from Indian Railways to qualify for same event i.e 20 Km Race Walk in Tokyo Olympics 2020.
She won Gold Medal at 7th National Race Walking Championship in 2020.
We wish her all the best🇮🇳💐#Cheer4India#Go4Gold_India pic.twitter.com/tzNhxLOOzw
भावना ने एक अन्य इंटरव्यू में बताया कि उन्हें उनके इलाके के निजी साहूकारों से 2 लाख रुपए का कर्जा लेना पड़ा जिससे वो अपनी ट्रेनिंग, डाइट और दूसरे खर्चों को निपटा सकें। भावना कहती हैं मेरी टोक्यो जाने से मुझे कुछ अवार्ड्स मिल जाएंगे जिससे मैं कुछ पैसे जुटा सकूंगी औऱ उधार लिया पैसा ब्याज सहित चुका सकूंगी। क्योंकि पिछले 6 महीने से मैं बिना किसी आमदनी के काम कर रही हूँ।
कोरोनो वायरस महामारी के कारण 2020 एशियाई रेस-वॉकिंग चैंपियनशिप रद्द होने से पहले, भावना ने ट्रेनिंग में 1 घंटे 28 मिनट और 4 सेकंड का समय निकाला था, इस तरह की कोशिश उन्हें रियो 2016 में कांस्य पदक दिल सकती थी। टोक्यो में चाहें जो रिजल्ट रहे, आर्थिक दुश्वारियों के बीच भावना की योग्यता ने उन्हें पहले ही नेशनल यूथ ऑइकन तो बना ही दिया है।