इस बार टोक्यो ओलंपिक ( Tokyo Olympic 2020) में भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल (India Olympics 2021) जा रहा है। भारतीय खिलाड़ियों की ट्रेनिंग, डाइट, स्पोर्ट्स किट और अन्य सुविधाओं पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं। लेकिन तब ऐसा नहीं था, देश को नई-नई आजादी मिली थी। देश अपने पैरों पर खड़े होना सीख ही रहा था। ऐसे में स्पोर्ट्स पर सरकार पैसे खर्च करेगी, ऐसा सोचना भी नामुमकिन था। लेकिन ऐसे वक्त में एक खिलाड़ी ने अपनी जिजीविषा और जीवट से देश में उम्मीद की लौ जगाई थी, ये थे केडी जाधव (KD Jadhav)

खाशाबा दादासाहेब जाधव (KD Jadhav) किसी एक सिंगल इवेंट में ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी थे। जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर भारत का जलवा कायम किया था। लेकिन क्या आपको उनके ओलंपिक तक जाने की बेहद मार्मिक कहानी पता है?
अपने देश के लिए गिरवीं रखा घर
सबसे पहले जाधव (KD Jadhav) ने सन 1948 के लंदन ओलंपिक (1948 London Olympics) में भाग लिया था। इसमें वो छठे स्थान पर रहे। लेकिन उन्होंने अपनी परफार्मेंस से काफी सुर्खियां बटोरीं। वापस लौटते ही जाधव अगले ओलंपिक की तैयारियों में लग गए। 1952 के ओलंपिक हेलसिंकी (1952 Helsinki Olympics) में होने तय हुए थे। जबरदस्त खेल और अपनी हाड़तोड़ मेहनत के दम पर जाधव ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई तो कर लिया लेकिन फिर एक बार रुपए-पैसों की तंगी ने उनके कदम रोक लिए। हेलसिंकी ओलंपिक जाने के लिए जाधव के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। जिस कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की थी, वहां के प्रिंसिपल रहे शख़्स ने उन्हें उस दौर में 7 हजार की मदद करी। स्टेट गवर्नमेंट ने भी 4 हजार रुपए मंजूर किए। लेकिन इतना भी ओलंपिक जाने के लिए पर्याप्त नहीं था। लेकिन जाधव ने हार नहीं मानी और अपना घर गिरवीं रखकर ओलंपिक में जाने का सपना पूरा किया। इतना ही नहीं, हेलसिंकी से देश के इतिहास का पहला ओलंपिक पदक भी लेकर लौटे।
जाधव (KD Jadhav) ने हेलसिंकी में जर्मनी, कनाडा और मेक्सिको जैसे यूरोपीय और अमरीकी देशों के पहलवानों (wrestlers of Europe and American Countries) को हराया और फाइनल तक जा पहुँचे। लेकिन फाइनल मुकाबले से पहले आराम न मिलने के कारण रूसी पहलवान राशिद से हार गए। लेकिन इसके बावजूद विपरीत हालातों में देश के लिए पदक जीता।
देश लौटने पर हुआ ऐतिहासिक स्वागत
जब छोटे कद के बड़े पहलवान केडी जाधव (KD Jadhav) कांस्य पदक जीतकर भारत वापस लौटे तो उन्हें देखने के लिए मजमा सा लग गया। उन दिनों बैलगाड़ी का फैशन था। उनके स्वागत के लिए सड़क के दोनों ओर लोग खड़े थे। 100 बैलगाड़ियों से उनका स्वागत किया गया। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि उनके घर की 15 मिनट की दूरी तय करने में 7 घण्टे का समय लग गया।

1955 में उन्हें मुम्बई पोलीस में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात किया गया। रिटायरमेंट से पहले वो असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर तक की पोस्ट पर पहुंच गए थे। 1955 में उन्हें मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी गई. पुलिस में बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत जाधव (KD Jadhav) रिटायरमेंट से 6 महीने पहले असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बनाए गए थे.
भुला दिया गया देश का पहला ओलंपिक हीरो
लेकिन हर क्षेत्र की तरह यहां भी देश अपने इतने बड़े रियल हीरो को जायज़ सम्मान नहीं दे सका। केडी जाधव (KD Jadhav) इकलौते ओलंपिक विजेता रहे जिन्हें पदम् सम्मान तक नहीं मिला। 1984 में कैंसर के चलते जाधव चल बसे। ओलंपिक पदक जीतने के 50 साल बाद उन्हें अर्जुन पुरस्कार (in Arjuna Award KD Jadhav) से सम्मानित किया गया। साल 2001 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन पुरस्कार (Posthotomus Arjuna Award KD Jadhav) से नवाज़ा गया।