अब पहलवान रवि दहिया को कौन नहीं जानता। और जाने भी क्यों न! दहिया ने आखिर रेसलिंग में इस बार सिल्वर मेडल जो जीता है। लेकिन क्या आपको पता है कि रवि दहिया ने कुश्ती किसी हाई फाई विदेशी कोच की बजाय एक साधु बाबा से कुश्ती के दांव-पेंच सीखे हैं। जी हां, बिल्कुल सही सुना आपने। हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले रवि दहिया ने उनके गुरु ब्रह्मचारी हंसराज से कुश्ती का धोबी-पछाड़ सीखा है। रवि केवल 6 साल के थे जब वो हंसराज के अखाड़े में आये थे।।तब से लगातार हंसराज का साथ रवि को मिलता रहा।
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अन्य कोचों की तरह हंसराज तामझाम में यकीन नहीं रखते। हंसराज ने साल 1996 में ही घर-बार छोड़ दिया था। उनके अखाड़े में आस पास के गांव के सैकड़ों बच्चे रेसलिंग सीखने आते हैं। टोक्यो में सिल्वर मेडल जीतकर लौटे एथलीटों से उनकी डाइट से लेकर ट्रेनिंग तक तरह – तरह के अतरंगी सवाल पूछे जा रहे हैं लेकिन रवि दहिया ने बिना किसी लाग लपेट के सारा क्रेडिट अपने पहले गुरु संयासी हंसराज को दिया। सिंपल लाइफ जीने वाले हंसराज आजीवन कुँवारे रहे। लेकिन हमेशा से उनका टारगेट बच्जों को ट्रेन करना नहीं था। वो तो गांव से बाहर आश्रम बनाकर ध्यान लगाना चाहते थे। लेकिन गांव वालों की रिक्वेस्ट पर जबसे बच्जों को ट्रेनिंग देने का काम चालू।किया तबसे वो काम आज तक जारी है। अब तक उनके सैकड़ों चेले नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर झंडे गाड़ चुके हैं।
रवि दहिया को याद करते हुए हंसराज ने बताया कि जब वो मेरे अखाड़े में आया था तब महज 6 साल का था और वो 12 साल की उम्र तक मेरे पास रहा। इसके बाद मैं उसे इंटरनेशनल लेवल की ट्रेनिंग के लिए छत्रसाल स्टेडियम छोड़ आया था।
अपने बारे में एक्सपीरियंस शेयर करते हुए ब्रह्मचारी हँसराज ने कहा कि कुश्ती के दौरान उनके घुटने में चोट लग गई थी और उनका इंटरनेशनल लेवल पर खेलने का सपना, सपना ही रह गया। हँसराज कहते हैं कि उन्हें जमीन पर बैठने और चलने तक मे दिक्कत होती है पर बच्चों की डेडिकेशन देख कर उन्हें हौसला मिलता है। वो बेसिक ट्रेनिंग के लिए उनके पास आने वाले बच्चों को 5-6 साल तक सिखाने के बाद छत्रसाल स्टेडियम छोड़ आते हैं। लोग यहां मेरी रिस्पेक्ट करते हैं और जीवन मे क्या चाहिए। हंसराज कहते हैं कि मेरे बच्चे जब इंटरनेशनल लेवल पर मेडल लाते हैं तब मेरा इंटरनेशनल न खेल पाने का दर्द खत्म हो जाता है।