लखनऊ : अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) यूपी (UP) में भाजपा (BJP) को हराने के लिए पूरी तरह से एक्शन मोड (Action Mode) में आ गए है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने एक बार फिर संयुक्त रैली (Rally) की है। लेकिन इस बार CM योगी (CM Yogi Adityanath) को चुनौती देने के लिए पार्टी की ये रैली इन्होंने कहीं और नहीं बल्कि कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के गढ़, अलीगढ़ (Aligarh) में की है।
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और जयंत चौधरी (Jayant Chadhaury) यूपी (UP) में भाजपा (BJP) को हराने के लिए पूरी तरह से एक्शन मोड (Action Mode) में आ गए है। समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने एक बार फिर संयुक्त रैली की है। लेकिन इस बार CM योगी को चुनौती देने के लिए पार्टी की ये रैली इन्होंने कहीं और नहीं बल्कि कल्याण सिंह के गढ़, अलीगढ़ में की गई है। कल्याण सिंह, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे थे। जिनके कार्यकाल में अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। यूपी की राजनीति में कल्याण सिंह का बहुत अहम रोल रहा है। ऐसे में कल्याण सिंह के गढ़ में ही अखिलेश और जयंत ने बीजेपी को चनौती दे दी है। इसके पीछे अखिलेश और जयंत की क्या रणनीति है ? आईये जानते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लगातार राज्य के दौरे पर हैं। और गुरुवार को जिस दिन अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की अलीगढ़ में चुनावी रैली रखी गई थी। उसी दिन पीएम मोदी भी वाराणसी में मौजूद थे। ऐसे में कल्याण सिंह के गढ़ में चुनावी रैली कर सीधे तौर पर अखिलेश यादव ने मोदी को चुनौती दे दी है। सपा और RLD की ये रैली अलीगढ़ के इगलास (Iglas) में आयोजित की गई थी। हालांकि, अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल यादव और बेटी के कोरोना पॉजिटिव होने के चलते, इस रैली में शामिल नहीं हुए। उन्होंने खुद को isolate किया है। लेकिन बावजूद इसके, इस बात को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता कि अखिलेश, इस बार बीजेपी लहर को बढ़ने नहीं देंगे।
आपको जानकारी दे दें कि बीजेपी के फायर ब्रांड नेता कल्याण सिंह अलीगढ़ के अतरौली विधानसभा सीट से विधायक रह चुके है। इस सीट से कल्याण ने 1967 में पहली बार विधायक चुने गए थे और जिसके बाद वो लगातार 13 साल तक यानी 1980 तक यहीं से विधायक रहे। ऐसे में अलीगढ़ में भाजपा का दबदबा सबसे ज्यादा देखने मिला है। लेकिन अब साल 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव, अलीगढ़ के वोटरों को अपनी तरफ झुकाने के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहते है। और यही वजह है कि वो इस बार जयंत चौधरी का साथ लेकर बीजेपी को चुनौती दे रहे है।
वहीं इगलास में हुए सपा और RLD की जनसभा में भले ही अखिलेश यादव मौजूद न रहे हो लेकिन जितनी भारी संख्या में दोनों नेताओं के समर्थक मौजूद थे। उससे कहीं न कहीं अखिलेश ने अलीगढ़ की जनता को अपनी सत्ता की वापसी की सन्देश देने की कोशिश की है।
इगलास कस्बे में किसान दिवस पर राष्ट्रीय लोक दल और सपा की संयुक्त परिवर्तन रैली में कई हजार लोग आसपास के जिलों से शामिल होने पहुंचे। और अखिलेश यादव के गैरमौजूदगी में जयंत चौधरी ने रैली को संबोधित किया। जयंत चौधरी ने राम राम से अपने भाषण की शुरुआत की। इतना ही नहीं इस दौरान मंच से चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की आवाज भी उठी।
आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि रैली में जुटी अपार भीड़ हमारे आपके लिए शुभ संदेश है, अखिलेश ओर जयंत का जो हाथ मिला है तो चौधरी चरण सिंह का समीकरण सही होगा। चौधरी चरण सिंह कहते थे कि एक आंख खेत पर रखो और एक देश की राजनीति पर रखो। अखिलेश यादव ने चौधरी चरण सिंह को भरत रत्न देने की मांग की है, आज योगी-मोदी की नींद हराम हो जायेगी।
वहीं सपा की ओर से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने आवाज उठाई और रैली को संबोधित किया। नरेश उत्तम ने चौधरी चरण सिंह को नमन करते हुए कहा कि उनकी नीति से ही किसानों की स्थिति बदल सकती है। चौधरी साहब ने कहा था कि गांव किसान की खुशाल होने पर ही देश खुशाल हो सकता है। भाजपा ने किसानों और युवाओं से झूठ बोला है। चारों तरफ महंगाई का बोलबाला है। देश का लोकतंत्र खतरे में है। भाजपा देश के लोकतंत्र पर कुठाराघात कर रही है। देश की आर्थिक आजादी का झंडा अखिलेश जयंत के महागठबंधन के हाथों में है।
इगलास की भूमि चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि है। उनकी जयंती किसान दिवस के रूप में मनाई जाएगी. ये रैली 150 बीघे में आयोजित किया गया था. पदाधिकारियों को रैली के लिए भीड़ एकत्रित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में टिकट चाहने वालों को लक्ष्य दिया हैं। जिसमें कहा गया कि जो जितने ज्यादा लोगों को रैली में लाएगा, उसकी दावेदारी उतनी ही मजबूत होगी।
मालूम हो कि इससे पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) की संयुक्त रैली मेरठ में हो चुकी है। अभी तक दोनों ही दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर फैसला नहीं हो सका है. माना जा रहा है कि सपा आरएलडी को तीन दर्जन सीटें दे सकती है. कुछ सीटों पर सपा नेता आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं।