नरेंद्र गिरी नहीं रहे लेकिन उनके बारे में लोगों की दिलचस्पी लगातार बढ़ती जा रही है। पहले एसआइटी और अब सीबीआई जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, लगातार नए-नए खुलासे हो रहे हैं। इससे लोगों की उत्सुकता बढ़ती जा रही है कि आखिर इतने ताकतवर शख्स के साथ ऐसा हादसा आखिर हुआ तो हुआ कैसे? महंत के साथ हुआ हादसा कोई साजिश थी या फिर सुसाइड! ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन लोग इस बात से हैरत में है कि करीब 3000 करोड़ के साम्राज्य का मालिक, करोड़ों संतों के संगठन को लीड करने वाला शख्स, बेहद कम उम्र में अखाड़ा परिषद जैसी संस्था का अध्यक्ष बनने का गौरव! इतनी सारी उपलब्धियों के बावजूद आखिर क्या ऐसा क्या हुआ, कि ये नौबत आ गई। शायद यही वजह है कि लोग नरेंद्र गिरी के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी को जानना चाहते हैं। आखिर कैसे इलाहाबाद का एक बुद्धू शख़्स महंत नरेंद्र गिरि बन गया? क्या आप जानते हैं कि नरेंद्र गिरी पहले बैंक में नौकरी करते थे? क्या है वो मजेदार कहानी आइए आपको दिखाते हैं…
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महंत के बड़े भाई अशोक सिंह कहते हैं वो बचपन से ही जुझारू थे। अक्टूबर 2019 में उन्हें लगातार दूसरी बार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया था। संन्यास से पहले नरेंद्र सिंह के नाम से मशहूर महंत नरेंद्र गिरि ने महज 18 साल की उम्र में अपना घर-बार छोड़ दिया था। लंबे समय तक गुरु सेवा के बाद उन्होंने दीक्षा ली और राम मंदिर आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। साल 2016 का एक किस्सा बहुत मशहूर है। महंत नरेंद्र गिरी कुंभ नगरी उज्जैन गए थे। वहां का लोकल प्रशासन लापरवाही कर रहा था। तब उन्होंने बहुत दबंग अंदाज में स्थानीय प्रशासन से कुंभ क्षेत्र की जमीनों की सिक्योरिटी टाइट करने की बात कही थी। उनका इतना कहते ही प्रशासन तुरंत हरकत में आया और वहां पर संतों के लिए निर्माण कार्य भी कराया गया। महंत अपने प्रकृति प्रेम के लिए भी बहुत मशहूर थे। उज्जैन की मशहूर शिप्रा नदी, जिसकी प्राकृतिक धारा गायब हो चुकी थी उसके लिए भी उन्होंने काफी कोशिशें की। शिप्रा के चारों ओर पेड़ लगाने की शुरुआत भी उनके कहने पर ही हुई थी। ये नरेंद्र गिरी ही थे जिनकी कोशिशों के चलते पहली बार शैव और वैष्णव संतों का शाही स्नान एक साथ हुआ था । वो हमेशा से संत समाज में एकजुटता करवाते रहे। आपको बता दें शैव यानि शिव की पूजा करने वाले संत और वैष्णव यानि विष्णु की पूजा करने वाले संत।
आइए अब आपको लेकर चलते हैं महंत के बचपन में। महंत का बचपन काफी दिलचस्प था। वो 8 साल की उम्र में ही घर से भाग गए थे। उसके बाद उनके घर वाले जैसे तैसे उन्हें पकड़ कर लाए। इसके 2 साल बाद 10 साल की उम्र में वो एक बार फिर घर से भाग निकले। इस बार उन्हें ढूंढने में काफी मुश्किल हुई। तब उन्हें मुंबई में जाकर पकड़ा गया। उसके बाद घर वालों ने उन्हें ननिहाल भेज दिया था, जहां । उनकी बाकी की जिंदगी बीती। इसके बाद उनकी कम उम्र में ही उनकी नौकरी बैंक ऑफ बड़ौदा में लग गई। नरेंद्र सिंह क्लर्क के पद पर काम करते थे। क्योंकि वो बचपन में ही कई बार भाग चुके थे, इसलिए नौकरी लगने के बाद घर वालों ने उनकी शादी की कोशिशें तेज कर दी। कुछ ही समय में घर वालों ने एक लड़की देख कर उनकी शादी भी फिक्स कर दी। लेकिन जैसे ही उन्हें अपनी शादी के बारे में पता चला उन्होंने बिना वक्त गंवाए घर छोड़ने का इरादा कर लिया। जब महंत बैंक में नौकरी कर रहे थे तब ऑफिस बंद करने की आखिरी जिम्मेदारी उन्हीं की हुआ करती थी। एक दिन उन्होंने काम खत्म होने के बाद बैंक को बंद करवाया और उसकी चाबी गार्ड को देने के बाद कहीं निकल गए। घरवालों को भी नहीं पता चला कि वो कहां गए। उनके बड़े भाई अशोक सिंह कहते हैं उन्हें करीब एक डेढ़ साल तक ढूंढा गया लेकिन ना मिलने के बाद घर वालों ने हार मान ली थी। वो घर छोड़ने के 18 सालों तक संतों की संगत करते रहे। सन्यास धर्म की दीक्षा के साथ सभी संस्कार भी पूरे किए। साल 2014 में उन्हें अखाड़ों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद उनकी पॉपुलरटी तेजी के साथ बढ़ी। यही वो समय था जब उनके चेले आनंद गिरी के साथ उनके संबंध खराब हुए और इस कांड की स्क्रिप्ट लिखी गई।