यूपी की राजधानी लखनऊ को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिला है. कहा जाता है कि मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं. मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, अधिकारी, जिम्मेदार, हुक्कमरान सभी इसी लखनऊ में बैठने हैं. लेकिन ऐसा लगता है सब गहरी नींद में सो रहे हैं. अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा तो इस तस्वीर को देखिये। आज़ादी के 74 साल बाद भी लखनऊ में बसे लोगों को नाव के सहारे अपनी ज़िन्दगी पार करनी पड़ रही है. गोमती नदी के ऊपर सदियों पुराना पीपा पुल बना हुआ था जो इस बरसात में बह गया. इस पुल के साथ बह गयीं हज़ारों लखनऊवासियों की उम्मीदें। कई स्थानीय लोग हादसे का शिकार चुके हैं. लाखों बार स्थानीय लोगों ने अपनी समस्या को लेकर आवाज़ उठाई लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगा।
लखनऊ की जनता अब विकास को पुकार रही है, विकास कहाँ हो विकास ज़रा यहाँ भी आजाओ… लखनऊ का ये पीपे वाला पुल जिसपर हर रोज़ हज़ारों लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर सफर करने को मजबूर थे क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है. यह एक ऐसा भी पुल है जो की अंग्रेजों के समय से बनवाया गया था इसे आज पीपे वाले पुल के नाम से लोग जानते है। लखनऊ 50 हजार आबादी इस पुल से निकलती है। बताते चलें कि पुराने लखनऊ के गऊघाट से गला व दाउदनगर को जोड़ने वाला ये पीपे वाला पुल आजादी के पहले से बना है। यहाँ के स्थानी लोग बताते हैं कि काफी समय से स्थाई पुल निर्माण की मांग चल रही है पर इतनी सरकारें आई अभी तक किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली।
पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका था जिसके बावजूद लोग इसी पुल का इस्तेमाल कर रहे थे। अब जब पल बह चुका है तो लोग नाव के सहारे सफर कर रहे हैं. क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या महिलाएं सभी इसी के सहारे हैं न ही उन्हें कोई उम्मीद पहले थी न ही अब है। पुल के नदी में बह जाने से करीब पचास हज़ार लोगों का जनजीवन प्रभावित हुआ है.
फैजुल्लागंज निवासी सुरेश (दूध विक्रेता) बताते है कि “पुल भले ही जर्जर हालत में था लेकिन हम जैसे तैसे शहर पहुँच अपनी रोजी रोटी चला लिया करते थे लेकिन पुल नदी में बह जाने के बाद से दुश्वारियाँ बढ़ गयी हैं. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, छोटी छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।”