Political News: कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का जब-जब नाम लिया जाएगा तब-तब बाबरी मस्जिद (Babri Masjid Demolition) का जिक्र जरूर आएगा। और आखिर हो भी क्यों ना! 6 दिसंबर 1992 के बाद ही कल्याण सिंह नेशनल लेवल पर लाइमलाइट में आ गए थे। उनके जाने के बाद भी उन्हें प्रचंड राम भक्त और कट्टर हिंदूवादी नेता (Ram Bhakt and Hindutva leader Kalyan Singh) के रूप में याद किया जा रहा है। नेतागण भी उसे अपने हिसाब से भुनाने में लगे हुए हैं। लेकिन क्या आपको पता है वो किस्सा, जब कल्याण सिंह (Kalyan Singh Ramlala speech) की डायरेक्ट रामलला (Ramlala) से बात हो गई थी। कल्याण सिंह (Kalyan Singh) आस्थावान व्यक्ति थे। ऐसे में लोग इसके बारे में तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं, लेकिन आखिर क्या था पूरा मामला?
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इतिहास में जब-जब कल्याण सिंह का नाम लिखा जाएगा। बाबरी मस्जिद का नाम जरूर आएगा और आखिर हो भी क्यों ना! 6 दिसंबर 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस ही था जिसने कल्याण को देशभर में एक पहचान दिलाई। यूँ तो कल्याण सिंह उससे पहले भी 1991 में।मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने अपनी पहचान एक सख़्त फैसले लेने वाले सीएम की बनाई। अपने लोगों में बाबूजी के नाम से मशहूर कल्याण ने पहली ही सरकार में नकल अध्यादेश लाने का काम किया। इसमें नकल करते पकड़े जाने पर सीधे जेल होती थी। लेकिन इसके बावजूद कल्याण को अगर कभी न मिटने वाली पहचान मिली तो 6 दिसंबर 1992 से। वो तारीख जब लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद तोड़ दी थी। लेकिन समुदाय विशेष में बदनाम होने के बावजूद कल्याण ने इस बात का कभी कोई रंज, गिला या शिकवा नहीं किया। वो मुस्तफा खां शेफ्ता का एक शेर है न कि –
हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम
बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा।
कुछ ऐसा ही हाल कल्याण का भी रहा। वो ताउम्र बाबरी को मस्जिद मानने से इंकार करते रहे। वो उसे एक ढांचा कहते थे। उनका वो मशहूर भाषण लोग आज भी याद करते हैं तो जिसमें उन्होंने मस्जिद गिरने के बाद कहा था कि राम मंदिर ही मेरी पार्टी का उद्देश्य था और अब हमारा उद्देश्य पूरा हुआ।
बाबरी कांड के बाद कल्याण सिंह की सरकार तो बर्खास्त कर दी गई थी लेकिन इस बीच देशभर में उनकी पॉपुलैरिटी तेजी के साथ बढ़ी। उनकी पार्टी यानी बीजेपी भी इस बात को खूब समझ रही थी। इसीलिए अगले विधानसभा चुनावों में उन्हें एक बार फिर सीएम का फेस बनाया गया। इन्हीं चुनावों से पहले कल्याण सिंह ने एटा में एक सभा को संबोधित करते हुए एक बात कही थी। उस बात से साबित होता था कि राम मंदिर को लेकर किस कदर कॉन्फिडेंस उनके दिमाग में था। ये वो दौर था जब भाजपा कल्याण को एक हीरो के रूप में पेश कर रही थी। ये बात है साल 1993 की। जगह थी एटा।
कल्याण सिंह एक जनसभा को संबोधित करने आए हुए थे। उन्हें एटा के रामलीला मैदान में रैली करनी थी। आलम ये था कि पूरे एटा की सड़के जाम हो गई थीं। मैदान खचाखच भर गया था। पूरा मैदान कल्याण सिंह जिंदाबाद और जय श्रीराम-जय श्रीराम के नारों से गूंज रहा था। ऐसा लग रहा था कि मानों सारे कारसेवक अयोध्या में आकर फिर इकट्ठा हो गए हैं। लेकिन तभी जिन लोगों ने रैली ऑर्गेनाइज की थी वो परेशानी में पड़ गए। असल में अचानक मौसम खराब हो गया था। आसमान में काले काले बादल छाए हुए थे। आयोजकों को डर था कहीं ऐसा ना हो कि बीच में बारिश हो जाए और भीड़ आधी रह जाए या छँट जाए। लेकिन तभी कल्याण ने आयोजकों के तनाव को ताड़ लिया।
जैसे ही उन्होंने माइक संभाला और माइक संभालते ही बोले अपने अंदाज में। कल्याण बोले, राम लला से मेरी हॉटलाइन पर बात हो गई है। जब तक मैं बोलूंगा तब तक कोई बारिश नहीं होगी। कल्याण का ऐसा कहना था कि उनकी बात पत्थर की लकीर साबित हुई। कल्याण के इतना कहने के बाद जब तक कल्याण बोलते रहे, तब तक बारिश की एक बूंद तक नहीं गिरी। जबकि पूरे समय मौसम काफी खराब रहा और लगातार बादल छाए रहे। मजे की बात तो ये है कि कल्याण के हटते ही वहां जमकर बारिश हुई। ये वाक्या आज भी एटा के पुराने लोग खूब रस लेकर सुनाते हैं।
बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और खांटी भाजपाई और कल्याण सिंह के करीबी रहे लक्ष्मीकांत वाजपेई कहते हैं कि उनका भाषण लोग बड़े चाव से सुना करते थे। वो रुक-रुक कर बोलते थे लेकिन उनका उच्चारण बहुत ही जस्पष्ट और साफ था। एक वाक्य बोलने के बाद वो दो पल का गैप लेते थे। इससे ये होता था कि लोगों के अंदर उनकी बात गहराई से उतर जाती थी। एक्स एमएलए सुधाकर वर्मा कहते हैं आजकल जब चुनावी रैलियों में जब फूहड़ टांट कसे जाते है ऐसे में बाबू जी की स्पीच आज भी एक मिसाल है। ये बात देखें तो काफी हद तक सही भी नजर आती है आजकल संसद से लेकर चुनावी रैलियों तक नेता काफी सस्ती भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं। नेताओं में घटिया से घटिया और सड़क छाप भाषा इस्तेमाल करने की मानो होड़ सी लग गई हो।