तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। पूरी दुनिया की नजरें अफगानिस्तान पर हैं। अफगानिस्तान में लड़कियों, औरतों के बुरे दिन लौट आये हैं। अब फिर से औरतें-लड़कियों को शरिया कानून झेलना होगा।
Conflict in Afghanistan is forcing hundreds of thousands to flee amid reports of serious human rights violations.
— António Guterres (@antonioguterres) August 15, 2021
All abuses must stop.
International humanitarian law and human rights, especially the hard-won gains of women and girls, must be preserved.
लेकिन महज 20 हजार आतंकवादियों का संगठन इतना ताक़तवर आखिर हो कैसे गया? क्या है आख़िर उसके पैदा होने की कहानी, क्या अमरीका ने खड़ा किया तालिबान! आखिर क्या है सच्चाई। आइये आपको बताते हैं तालिबान की पूरी जन्म कुंडली-
तालिबान के पैदा होने की कहानी उसी लाइन से शुरू होती है, जिसमे कहा जाता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त!
जी हां, अफगानिस्तान में कभी परमानेंट सरकार नहीं रह सकी। हमेशा से दूसरे के दबाव में काम करने वाली सरकारें ही रहीं। अमेरिका और रूस के आपसी झगड़े और अफगानिस्तान पर कब्जे की होड़ ने एक अच्छे भले देश को तो बर्बाद करके रख ही दिया, साथ ही पैदा कर दिया तालिबान जैसा बर्बर राक्षस। जो सदियों पुराने शरिया कानूनों और जंगली रिवाजों में यकीन रखता था।
बात है सन 80 के दशक की। तब अफगानिस्तान में वहां के आखिरी राजा मोहम्मद जहीर शाह का शासन चल रहा था। वो इतिहास में मशहूर राजा नादिर शाह के बेटे थे। कहने को तो शासन जहीर शाह का था, लेकिन असल हुकूमत सोवियत यूनियन की थी। वही सोवियत यूनियन जिसे आज रूस के नाम से जाना जाता है। इसी दौर में सोवियत यूनियन और अमरीका में जोरों की रस्साकशी चल रही थी। दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। दोनों का टॉरगेट एक ही था, और वो था दुनिया पर अपनी बादशाहत कायम करना।इसी दौर में अमरीका ने हथियार और पैसे देकर तालिबान को खड़ा किया, जिससे वो अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़े और उसकी नाक में दम कर दे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। तालिबान धीरे-धीरे मजबूत होने लगा। इस बीच सऊदी अरब, ईरान और पाकिस्तान ने भी तालिबान के मजबूत होने में मदद की। सऊदी अरब और ईरान जहां पैसे से मदद कर रहे थे वहीं पाकिस्तान अपनी इंटेलीजेंस आईएसआई और अपनी जमीन के जरिये मदद मुहैया करवा रहा था।

80 का दशक खत्म होते-होते सोवियत को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा और कट्टरता की बुनियाद पर खड़े हुए तालिबान ने अपनी जड़ें इतनी मजबूती से जमा लीं कि उसे अमरीका से भी कोई डर नहीं रहा। इतना ही नहीं 10 साल के भीतर तालिबान इतना ताकतवर हो गया कि अमरीका पर 9/11 जैसा हमला तक हो गया। यूँ तो ये हमला खूँखार आतंकवादी संगठन ओसामा बिन लादेन के संगठन अल कायदा ने किया था लेकिन बाद में तालिबान के भी इसमें सपोर्ट करने की भी खबरें आईं थीं।

यानि पानी अब सर से इतना ऊपर जा चुका था कि अमरीका खुद भी हैरान था कि सोवियत यूनियन यानि रूस को अफगानिस्तान से हटाने के लिए जो पिट्ठू उसने खड़ा किया था अब वो उसके ही गले की हड्डी बन चुका था। 2001 में अमरीका में 9/11 हमले के बाद बड़े पैमाने पर अमरीका और नाटो की फौजें अफगानिस्तान में घुस गईं और तालिबान को खत्म करने का अभियान शुरू कर दिया गया। इसके बाद से तालिबान की धार्मिक सत्ता को खत्म किया गया और लेकिन 20 साल के लंबे संघर्ष के बाद भी अमरीका अफगानिस्तान को जड़ से खत्म नहीं कर सका। हालात ये हो गई कि इन बीस सालों में अपने हजारों सैनिक गंवाने के बाद अमरीका के अंदर भी फौज को वापस बुलाने की मांग जोर पकड़ने लगी। ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया कि पिछले दिनों हुए अमरीका के चुनाव में ट्रम्प ने साफ कर दिया था कि 11 सितंबर तक अमरीका का हर सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देगा।
अफगानिस्तान की पश्तो भाषा में तालिबान जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा में ट्रेंड हों। कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संगठनों की मदद से पाकिस्तान में इसकी बुनियाद खड़ी की थी. 90 के शुरुआती दौर में जब तालिबान आया तो अफगानिस्तान के लोग लोकल गुंडों, करप्शन और रसूख वाले लोगों से परेशान थे, ऐसे में उन्हें तालिबान में एक मसीहा दिखाई दिया। लेकिन जल्द ही जब तालिबान अपने असली कट्टर रूप में आ गया और औरतों को कोड़े मारने, सिर फोड़ने, आम लोगों को सरेआम मौत की सजा देने लगा तो लोगों में जल्द ही इसकी पॉपुलरिटी खत्म हो गई।

इसके बाद 20 साल अमरीका और नाटो फौजों के साये में अफगानिस्तान की सरकार चलती रही, लेकिन अब अचानक अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जे के बाद पुराने हालात लौट आये हैं। पाकिस्तान और ईरान से सटी सीमा पर तालिबान ने पहले ही कब्जा कर लिया था। अब उसने अफगानिस्तान में टैक्स वसूलना भी शुरू कर दिया है। सरकारी ऑफिस खाली करा लिए गए हैं और औरतों के ब्यूटी सैलून बंद कराए जा रहे हैं। मामला साफ है, अफगानिस्तान का भविष्य अधर में है।