महंत नरेंद्र गिरि कांड के बाद से अपने तमाम मठ, मन्दिर और आश्रम के बारे में देखा और सुना। लेकिन महिला नागा साधु! ये शब्द सुनने के बाद आपके दिमाग में पहली तस्वीर क्या उभरती है? असल में नागा एक पदवी होती है। साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन तीन तरह के अखाड़े होते हैं। तीनों ही संप्रदायों में नागा साधु होते हैं। इन अखाड़ों में कुछ नागा वस्त्र धारी और ज्यादातर दिगंबर होते हैं। इसी तरह महिलाएं भी जब सन्यास की दीक्षा लेती हैं तो उन्हें भी नागा बना दिया जाता है।
लेकिन महिला नागाओं के मामले में इन्हें आम तौर पर अलग रखा गया है। महिलाओं का एक अलग अखाड़ा है, जिसे माई बाड़ा कहा जाता है। खास बात ये है कि माई बाड़ा अखाड़े को प्रयागराज कुंभ 2013 में जूना अखाड़े में शामिल कर लिया गया था। जूना अखाड़े ने माई बड़ा को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का स्वरूप प्रदान कर दिया था। कुंभ क्षेत्र में माईबाड़ा का पूरा रंग-रुप ही बदल गया है। अखाड़े ने उसे परमीशन देकर अपनी मोहर लगा दी थी। उन दिनों लखनऊ के श्री मनकामेश्वर मंदिर की चीफ महंत दिव्या गिरि को सन्यासिनी अखाड़े का अध्यक्ष बनाया गया था।
इस अखाड़े की महिला साधुओं को माई अवधूतिनि या नागिन कहा जाता है। हालांकि इन महिला नागाओं अखाड़े के प्रमुख पदों में से किसी पद पर नहीं चुना जाता। उन्हें किसी खास इलाके का हेड बनाकर श्रीमहंत का पद दे दिया जाता है। खास बात तो ये है कि इस पद पर चुने जाने वाली महिला नागाओं को शाही स्नान के दौरान पालकी में चलने की सुविधा मिलती है। उन्हें अखाड़े के प्रतीक के तौर पर ध्वज, डंका और दाना धार्मिक ध्वज में लगाने की छूट दी जाती है। अखाड़ा कुंभ मेलों में महिला सन्यासियों के लिए माईबाड़ा नाम से अलग शिविर भी लगाता है।
इसे जूना अखाड़े के ठीक पड़ोस में बनवाया जाता है। आपसे यकीन नहीं कर पाएंगे कि जूना अखाड़े में 10,000 से ज्यादा महिला साधु सन्यासी हैं। इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी जबरदस्त है। खासकर बात करें अगर यूरोप की महिलाओं की तो आगे का वीडियो आपको काफी चौंकाएगा। इंग्लैंड, इटली और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। ये जानते हुए भी कि नागा साधु बनने के लिए कठिन तपस्या और प्रोसेस से गुजरना पड़ता है। इसके बावजूद विदेशी महिलाएं लगातार नागा बन रहीं हैं।
नागा संन्यासी बनने के लिए जिंदा में में खुद का करना होता है पिंडदान : किसी लड़की या औरत को नागा संन्यासी बनने के लिए अपने जिंदा में ही पिंडदान करना पड़ता है। ये काफी कठिन काम है क्योंकि लोग आमतौर पर मरने के बाद अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। ऐसे में जिंदा रहते हुए खुद का पिंद दान करना काफी चैलेंजिंग काम है। नागा साधु बनने के लिए महिला को टेस्ट देना पड़ता है। इसमें लगातार 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद उनके गुरु चेक करते हैं कि वो साधु बनने के लायक हैं या नहीं। इसके बाद ही उन्हें संन्यास की दीक्षा दी जाती है। महिला नागा साधु को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। इसलिए सबसे आखिरी और अहम बात। महिला नागा साधुओं को एक पीला कपड़ा लपेट कर रखना होता है : जैसा कि नाम से ही साफ है कि पुरुष नागा साधु कपड़े नहीं पहनते। तो आपके मन में भी न महिला नागा साधुओं को लेकर तमाम तरह के सवाल उठ रहे होंगे। आपको बता दें कि महिला नागा साधु और पुरुष नागा साधु में केवल यही एक बेसिक अंतर है। महिला नागा साधुओं को एक पीला कपड़ा लपेट कर रखना होता है। इसे गंती कहा जाता है। आपको बता दें यह कपड़ा सिला हुआ नहीं होता। महिलाओं को पहनने के लिए सिर्फ यही एक कपड़ा दिया जाता है। हालांकि जूना अखाड़े की महिला नागाओं को इससे छूट मिली हुई है। जूना अखाड़े की महिला नागा साधु नग्न रह सकती हैं। नवोदय टाइम्स की एक रिपोर्ट तो ये भी कहती है कि पुरुष और महिला नागा साधु एक साथ रहते हैं।